मैंने ध्यान दिया है कि मेरे पति आँखें बंद करके चर्च स्तुति समूह के साथ माउथ ऑर्गन पर गाना बजाते हैं l उनके अनुसार वे इससे केन्द्रित होकर बिना विकर्षण के सर्वोत्तम तरीके से बजा पाते हैं अर्थात् उनका माउथ ऑर्गन, संगीत, और सभी परमेश्वर की प्रशंसा करते हैं l
कुछ लोग सोचते हैं कि प्रार्थना में हमारी आँखें बंद होनी चाहिए l प्रार्थना कभी भी और कहीं भी करते समय, विशेषकर, चलते हुए, घास-फूस साफ़ करते और गाड़ी चलाते समय ऑंखें बंद रखना कठिन है!
परमेश्वर से बातें करते समय हमारे शरीर के ढंग के विषय कोई नियम नहीं है l सुलेमान ने अपने द्वारा निर्मित मंदिर के समर्पण के समय, घुटने टेककर “स्वर्ग की ओर हाथ [फैलाकर]” प्रार्थना किया (2 इतिहास 6:13-14) l घुटने टेकना (इफि. 3:14), खड़े होना (लूका 18:10-13), और मुँह के बल (मत्ती 26:39), प्रार्थना के सभी ढंग बाइबिल में हैं l
परमेश्वर के समक्ष घुटने टेकना अथवा खड़े होना, अपने हाथों को स्वर्ग की ओर उठाना अथवा परमेश्वर पर केन्द्रित होने के लिए अपनी आँखें बंद करना, अर्थात हमारे शरीर का ढंग नहीं, किन्तु हृदय की दशा विशेष है l हमारे हरेक कार्य “का मूल श्रोत वही है” (नीति. 4:23) l प्रार्थना करते समय, हमारे हृदय हमारे प्रेमी परमेश्वर के समक्ष इबादत, कृतज्ञता, और दीनता में झुक जाएँ, क्योंकि उसकी ऑंखें और उसके कान उसके लोगों की प्रार्थना की ओर लगी रहती हैं (2 इतिहास 6:40) l
एक दीन हृदय की गहराई से ही प्रार्थना का उच्चतम भाव निकलता है l