सीमित गतिशीलता और पुराने दर्द की निराशा और अवसाद से तीन वर्षों से जूझते हुए, मैंने एक सहेली से अपनी बातें बतायी, “मेरा शरीर अत्यधिक कमज़ोर है l मानो मैं परमेश्वर अथवा किसी को भी कुछ मूल्यवान दे नहीं सकती l  

उसके हाथ मेरे हाथों पर थे l “क्या मुस्कराहट के साथ मेरा तुमसे मिलना अथवा तुम्हारी सुनना कोई अंतर नहीं डालता? क्या तुम्हारे लिए मेरी प्रार्थना अथवा एक उदार शब्द व्यर्थ है?”

मैं आरामकुर्सी में बैठकर बोली, “बिल्कुल नहीं l”

वह भौं चढ़ाकर बोली, “तब तुम खुद से ये झूठ क्यों बोल रही हो? तुम वह सब काम मेरे लिए और दूसरों के लिए करती हो l”

मैंने परमेश्वर को ये सब बातें याद दिलाने के लिए धन्यवाद दिया कि उसके लिए किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं है l

1 कुरिन्थियों 15 में पौलुस हमें आश्वश्त करता है कि अभी हमारा शरीर कमजोर हो सकता है किन्तु वह “सामर्थ्य के साथ जी उठेगा” (पद.43) l

क्योंकि परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि हम मसीह में जी उठेंगे, हम उसके राज्य में अंतर लाने के लिए उसपर भरोसा करें कि वह हमारा हरेक बलिदान, हरेक छोटा प्रयास उपयोग करेगा (पद.58) l

हमारे संघर्ष में हमारी शारीरिक दुर्बलता, मुस्कराहट, उत्साहवर्धक शब्द, प्रार्थना, अथवा विश्वास का एक सबुत मसीह की विविध और स्वतंत्र देह के लिए उपयोगी होगी l प्रभु की सेवा में, कोई भी कार्य, अथवा प्रेम का कृत्य अति छोटा नहीं है l