जब हमारा बेटा ज़ेवियर छोटा बच्चा था हम पारिवारिक सैर पर मोंटेरेरी बे मछलीघर घूमने गए l मछली घर में घुसकर, मैंने छत से लटकता हुए एक बड़ी प्रतिमा की ओर इशारा किया l “देखो एक कुबड़ी व्हेल मछली l”
ज़ेवियर की आँखें बड़ी हो गयीं l “विशाल,” उसने कहा l
मेरे पति मुड़कर बोले l “वह यह शब्द कैसे जानता है?”
“उसने हमें बोलते सुना होगा l” मैंने अपना कन्धा समेटा, और चकित हुई कि हमारा बेटा शब्दावली सीख लिया है जो हमने उसे स्वेच्छा से नहीं सिखाया था l
व्यवस्थाविवरण 6 में, परमेश्वर ने अपने लोगों से जानबूझ कर अपने युवा पीढ़ियों को वचन और आज्ञाकारिता सिखाने को कहा l इस्राएलियों द्वारा परमेश्वर के विषय अपना ज्ञान बढ़ाकर, वे और उनके बच्चे परमेश्वर का अधिक आदर करना सीखेंगे और उसको निकटता से जानने, उससे पूर्ण प्रेम करने, और उसके प्रति आज्ञाकारिता के प्रतिफल का आनंद लेंगे (पद.2-5) l
जानबूझ कर उसके वचन से अपना हृदय और मस्तिष्क भरने से (जपद.6), हम बेहतर तैयारी से अपने दैनिक गतिविधियों में परमेश्वर के प्रेम और सच्चाई को अपने बच्चों के साथ बाँट पाएंगे (पद.7) l उदहारण से अगुवाई करके, हम अपने युवाओं को परमेश्वर का अधिकार पहचाना, उसका आदर करना और उसकी अपरिवर्तनीय सच्चाई के लिए सज्जित और उत्साहित कर पाएंगे (पद.8-9) l
जब स्वाभाविकता से परमेश्वर का वचन हमारे हृदय और मुँह से निकलेगा, हम पीढ़ियों तक विश्वास की मजबूत विरासत छोड़ेंगे (4:9) l
हमारे द्वारा ग्रहण किये गए शब्द हमारी बोली को, हमारे रहन-सहन को,
और हमारे चारों-ओर के लोगों तक पहुँचने वाले शब्दों को निर्धारित करते हैं l