प्रार्थना को इच्छुक एक स्त्री ने एक कुर्सी खींचकर उसके आगे घुटने टेक ली l “रोते हुए, वह बोली, “मेरे स्वर्गिक पिता, मेरे निकट बैठिये; हम दोनों को बात करना ज़रूरी है!” तब, खाली कुर्सी की ओर देखकर, उसने प्रार्थना की l उसने परमेश्वर के निकट जाने में भरोसा जताया; उसने परमेश्वर को कुर्सी पर बैठे हुए कल्पना करके विश्वास की कि वह उसका निवेदन सुन रहा है l
परमेश्वर के साथ समय एक विशेष क्षण होता है जब हम सर्वशक्तिमान को उसमें शामिल करते हैं l एक आपसी भागीदारी में जब हम परमेश्वर के निकट जाते हैं (याकूब 4:8) l वह भी हमारे निकट आता है l उसने हमें आश्वस्त किया है, “मैं … सदा तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l हमारा स्वर्गिक पिता सदेव हमारा इंतज़ार करके हमारी सुनना चाहता है l
कितनी बार थके, निद्रालु, बीमार, और निर्बल होने के कारण हम प्रार्थना करने में संघर्ष करते हैं l किन्तु यीशु हमारी दुर्बलता और परीक्षाओं में हमसे सहानुभूति रखता है (इब्रा. 4:15) l इसलिए हम “अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बांधकर चलें कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे (पद.16) l
परमेश्वर सभी जगह है, सर्वदा उपलब्ध है, और सर्वदा सुनता है l