400 दिन मिस्र के एक जेल में बिताने के बाद रिहा होने पर ऑस्ट्रेलिया के एक पत्रकार ने मिलाजुली भावनाएँ व्यक्त की l अपनी रिहाई पर राहत स्वीकारते हुए, उसने उन मित्रों के लिए असाधारण चिंता जताई जिन्हें वह पीछे छोड़कर आ रहा था l उसने कहा कि अपने सह पत्रकारों को जो उसके साथ गिरफ्तार कर जेल भेजे गए थे अलविदा कहना बहुत कठिन था क्योंकि यह कहना कठिन था कि वे और कितने समय तक कैद रहनेवाले थे l
अपने मित्रों को पीछे छोड़ते समय मूसा ने भी बहुत चिंता दर्शायी l जब सीनै पर्वत पर परमेश्वर से उसके मुलाकात के समय उसके भाई, बहन और इस्राएली सोने के बछड़े की उपासना करने लगे, उनको खोने का भय उसे सताने लगा (निर्ग. 32:11-14), और उसने उनके लिए प्रार्थना की l अपनी चिंता दर्शाते हुए, उसने निवेदन किया, “तू उनका पाप क्षमा कर-नहीं तो अपनी लिखी हुयी पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे” (पद. 32) l
प्रेरित पौलुस भी अपने परिवार, मित्र, और राष्ट्र के लिए उसी तरह चिंतित था l यीशु में उनके अविश्वास के लिए दुखित होते हुए, पौलस ने कहा कि वह मसीह के साथ अपने सम्बन्ध को त्याग भी सकता है यदि ऐसा प्रेम उसके भाई और बहन को बचा सकता है (रोमियों 9:3) l
पीछे मुड़कर, हम देखते हैं कि मूसा और पौलुस दोनों ने ही मसीह का स्वभाव प्रगट किया l फिर भी, वह प्रेम जिसका वे केवल अनुभव कर रहे थे, और वह बलिदान जो वे चढ़ा सकते थे, यीशु ने पूरा किया कि वह हमारे साथ सदा रह सके l