मैं अपने पिता का चेहरा याद करता हूँ l उन्हें पहचानना कठिन था l वह दयालु व्यक्ति थे, किन्तु वैरागी और संयमी थे l बचपन में, मैं उनके चेहरे पर मुस्कराहट अथवा स्नेह खोजता था l चेहरा हमें प्रगट करते हैं l भौं चढ़ाना, रुखा निगाह, एक मुस्कराहट, और झुर्रीदार आखें दूसरों के बारे में हमारे विचार प्रगट करते हैं l हमारे चेहरे हमारी “पहचान” हैं l
भजन 80 का लेखक, आसाप, परेशान था और प्रभु का चेहरा देखना चाहता था l उसने यरूशलेम में रहकर अपने नज़रिए से उत्तर की ओर देखा, और यहूदा के सहयोगी राज्य, इस्राएल को असीरिया साम्राज्य द्वारा पराजित होते देखा l अपने मध्यवर्ती राज्य को जाते देख, यहूदा चारों ओर के आक्रमण से खुद को असुरक्षित पाया – उत्तर में असीरिया, दक्षिण में मिस्र, और पूरब में अरबी राज्य l सब उससे अधिक और बेहतर थे l
आसाप ने प्रार्थना में अपना भय तीन बार दोहराया (80:7,19), “अपना मुख का प्रकाश चमका, तह हमारा उद्धार हो जाएगा l” (अथवा, अन्य शब्दों में, मुझे अपनी मुस्कराहट दिखा.)
अपने भय से नज़र हटाकर स्वर्गिक पिता का चेहरा देखना अच्छा है l क्रूस की ओर देखकर हम परमेश्वर का चेहरा सर्वोत्तम तरीके से देख सकते हैं l क्रूस ही उसकी “पहचान है” (यूहन्ना 3:16) l
इसलिए यह जानिये : जब आपका पिता आपकी ओर देखता है, उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कराहट होती है l आप बहुत सुरक्षित हैं!
हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम क्रूस पर यीशु की खुली बाहों की तरह कीमती है l