जॉन न्यूटन लिखता है, “यदि, घर जाते समय, एक बच्चे ने एक छोटा सिक्का खो दिया है, और यदि, मैं उसे दूसरा दे देता हूँ, मैं उसके आँसू पोंछ सकता हूँ, मैं अनुभव करता हूँ कि मैंने कुछ किया है l मुझे उससे बड़े काम करने चाहिए, किन्तु मैं यह काम नहीं छोडूंगा l”
इन दिनों में, ऐसे लोगों को ढूँढना सरल है जिन्हें आराम चाहिए l एक किराने की दूकान में एक थका हुआ खजांची जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दो नौकरियाँ करता है; एक शरणार्थी जो घर वापस जाने की लालसा करता है; एक अकेली माँ जिसने अत्यधिक चिंता के कारण सारी आशा खो दी है; एक बूढ़ा व्यक्ति जिसे डर है कि उसने बहुत वर्षों तक बेकारी का जीवन जी लिया है l
किन्तु हमें क्या करना चाहिए? दाऊद ने लिखा, “क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है” (भजन 41:1) l यद्यपि, हम उन लोगों की गरीबी समाप्त नहीं कर सकते हैं जिनसे हमारी मुलाकात होती है हम उनपर विचार कर सकते हैं अर्थात् उनपर “ध्यान दे सकते हैं l”
हम लोगों को बता सकते हैं कि हम उनकी चिंता करते हैं l हम उनके साथ नम्रता और आदर दिखा सकते हैं यद्यपि उनमें चिड़चिड़ापन अथवा थकान दिखाई देता हो l हम रूचि दिखाकर उनकी कहानी सुन सकते हैं l और हम उनके लिए और उनके साथ प्रार्थना कर सकते हैं जो सबसे अधिक सहायक और चंगा करनेवाला कार्य है l
यीशु का वह पुराना विरोधोक्ति न भूलें जो उसने हमसे कहा था, “लेने से देना धन्य है” (प्रेरितों 20:35) l ध्यान देना सफल काम है, क्योंकि हम उस समय सबसे खुश होते हैं जब हम खुद को देते हैं l कंगालों पर ध्यान दें l
प्रेम के लिए खर्च होने वाला जीवन ही जीने के योग्य है l फ्रेडरिक बुचनर