हमारा छोटा बेटा नीबू को दांतों से काटकर, नाक सिकोड़कर, जीभ निकलकर, और आँखें मींचकर बोला, “खट्टा” l
मैंने हँसकर, उससे नीबू छीनकर कूड़े में फेंकना चाही l
“नहीं!” ज़ेवियर रसोई से दौड़कर मुझसे नीबू लेने आया l “और चाहिए!” उसने हर बार उस रसीले फल को काटते हुए अपने होंठ सिकोड़े l मैं चौंक गयी जब अंत में वह मुझे चिल्का देकर चला गया l
मेरी स्वाद-कोशिकाएं वास्तविक रूप से जीवन के मधुर क्षण के प्रति मेरा भेदभाव दर्शाती हैं l सभी कड़वी वस्तुओं को दूर रखने की मेरी पसंद अय्यूब की पत्नी की याद दिलाती है, जो दुःख के रूखेपन के प्रति मेरे विरोध के साथ है l
अय्यूब भी कठिनाई या परेशानी में आनंदित नहीं था, फिर भी हृदय की अत्यंत कष्ट पूर्ण स्थितियों द्वारा परमेश्वर का आदर किया (अय्यूब 1:1-22) l अय्यूब ने दुखदाई घावों का दुःख सहा(2:7-8) l उसकी पत्नी ने उससे परमेश्वर की निंदा करने को कहा (पद.9), किन्तु उसने कष्ट और पीड़ा में भी प्रभु पर भरोसा प्रगट किया (पद.10) l
जीवन की कड़वाहट से दूरी स्वाभाविक है l दुःख में परमेश्वर का विरोध करने की परीक्षा आ सकती है l किन्तु हमें भरोसा, निर्भरता, समर्पण सिखाने हेतु दुःख का उपयोग करते समय वह धीरज रखने में भी सहायता करता है l और अय्यूब की तरह, ज़रूरी नहीं कि हम दुःख के पीछे छिपी मिठास अर्थात् विश्वास की दृढ़ता प्राप्त करने के लिए उसका आनंद लें l
परमेश्वर हमारे विश्वास को सामर्थी बनाने के लिए दुःख का उपयोग करता है l