शताब्दियों के युद्ध और विनाश के बाद, यरूशलेम का आधुनिक शहर वस्तुतः अपने ही मलबा पर बना है l एक पारिवारिक भ्रमण पर, हम विया दोलोरोसा अर्थात् दुःख के मार्ग पर चले, परंपरा अनुसार वह मार्ग जिसपर यीशु क्रूस लेकर चला था l दिन गर्म था, इसलिए हम विश्राम के लिए ठहरकर सिस्टर्स के मठ के ठन्डे तलघर घूमें l वहाँ मैंने रास्ते के प्राचीन पत्थर देखे जो हाल ही के निर्माण के समय खोद कर निकले गए थे-ऐसे पत्थर जिनपर खेल खुदे हुए थे जो रोमी सिपाही अपने खाली समय में खेलते थे l
वे ख़ास पत्थर, जो संभवतः यीशु के काल के बाद के थे, ने मुझे मेरे आत्मिक जीवन पर विचार करने को विवश किया l एक थका हुआ और व्यर्थ समय बिताते हुए रोमी सिपाही की तरह, मैं परमेश्वर और दूसरों के प्रति लापरवाह और अस्नेही हो गया था l मैं याद करके द्रवित हुआ कि उस स्थान के निकट जहाँ में खड़ा था, प्रभु पर मार पड़ी, उसका उपहास किया गया, उसकी निंदा की गयी, और उसे अपमानित किया गया जब उसने मेरे समस्त पराजय और विरोध को अपने ऊपर ले लिए l
“वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ” (यशा. 53:5) l
उन पत्थरों से मेरा सामना अभी भी मुझसे यीशु के स्नेही अनुग्रह की बात करता है जो मेरे समस्त पापों से महान है l
हमारे पाप बहुत हैं-परमेश्वर का अनुग्रह महान है l