अनेक वर्ष पूर्व मेरा एक पसंदीदा चर्च पूर्व-कैदियों के बीच एक सेवा के रूप में आरंभ हुआ जो समाज की मुख्य धारा में लौट रहे थे l वर्तमान में उस कलीसिया में समाज के हर क्षेत्र के लोग हैं l मैं उस कलीसिया को पसंद करता हूँ क्योंकि वह स्वर्ग की एक तस्वीर है-जिसमें विभिन्न तरह के लोग हैं, बचाए गए पापी, यीशु के प्रेम से बंधे हुए लोग l

कभी-कभी, यद्यपि, मुझे कलीसिया क्षमा प्राप्त पापियों के लिए एक सुरक्षित-आश्रय की जगह एक विशेष क्लब की तरह लगती है l जब लोग स्वाभाविक रूप से खींचकर “ख़ास प्रकार के” समूहों और झुंडों में उन लोगों के चारों ओर इकट्ठे हो जाते हैं जिनके साथ वे आरामदायक महसूस करते हैं, तब दूसरें अपने को अधिकार विहीन समझने लगते हैं l किन्तु जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि “जैसे मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम घी एक दूसरे से प्रेम रखो” (यूहन्ना 15:12) उसके मस्तिष्क में उपरोक्त बात नहीं थी l उसकी कलीसिया को उसके प्रेम का विस्तार  होना था जिसमें सभी परस्पर भागीदार थे l

यदि दुखित, उपेक्षित लोग यीशु में स्नेही शरण, आराम, और क्षमा प्राप्त कर सकते हैं, उनको कलीसिया से कम अपेक्षा नहीं करनी चाहिए l इसलिए हम सभी के सामने यीशु के प्रेम को प्रदर्शित करें-विशेष रूप से उनके सामने जो हमसे भिन्न हैं l हमारे चारों ओर लोग हैं जिन्हें यीशु हमारे द्वारा प्रेम करना चाहता है l प्रेम में एक साथ आराधना करना कितना आनंदायक है-स्वर्ग का एक टुकड़ा जिसका आनंद हम पृथ्वी पर ले सकते हैं l