मैंने पहली बार उसे देखा, और रो दिया l वह पालने में सो रहा एक नवजात शिशु ही दिखाई दे रहा था l किन्तु हम जानते थे कि वह कभी नहीं जागेगा l जब तक कि वह यीशु की बाहों में न हो l

वह बहुत महीनों तक जीवित रहा l तब उसकी माँ ने हृदय को अत्यंत कष्ट पहूंचानेवाली ई-मेल भेजी l उसने “उस अत्यंत दुःख के विषय लिखा जो किसी के अन्दर शोक उत्पन्न करता है l” तब वह बोली, “परमेश्वर ने उस छोटे जीवन द्वारा अपने प्रेम के कार्य को कितनी गहराई से हमारे हृदयों में डाला था!” वह कितना सामर्थी जीवन था l”

सामर्थी? वह ऐसा कैसे कह सकती थी?

उस परिवार के इस छोटे प्रिय बच्चे ने उनको और हमको दर्शा दिया था कि हमें सब कुछ के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहना है l विशेषकर जब स्थिति अत्यंत ही ख़राब हो! कठिन किन्तु तसल्ली देनेवाला सच यह है कि परमेश्वर हमारे दुःख में हमसे मुलाकात करता है l एक बेटे के खोने का दर्द उसे मालूम है l

हमारे गहरे दुःख में, हम दाऊद के गीतों की ओर ध्यान देते हैं क्योंकि वह अपने दुःख में लिखता है l “मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ, और दिन भर अपने हृदय में दुखित रहा करूँ?” उसने पूछा (भजन 13:2) l “मेरी आँखों में ज्योति आने दे, नहीं तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी” (पद.3) l फिर भी दाऊद अपने बड़े प्रश्नों को परमेश्वर को सौंप सकता था l “परन्तु मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा” (पद.5) l

केवल परमेश्वर ही हमारे सबसे दुखद समयों को सर्वश्रेष्ठ महत्त्व दे सकता है l