जब समाज में अपनी भूमिका बताने के लिए बोला गया जो कभी-कभी कानून को लागू करने में असहयोगी था, उस शासनाधिकारी ने न तो अपना बैज दिखाया और न ही अपने पद के आधार पर जवाब दिया l इसके विपरीत उसने कहा, “हम मनुष्य हैं और उन मनुष्यों की मदद करते हैं जो संकट में हैं l”
उसकी दीनता अर्थात् अपने साथी मनुष्यों के साथ उसके द्वारा व्यक्त की गयी समानता, मुझे पतरस के शब्द याद दिलाते हैं जब वह रोमी शासन के आधीन सताव सह रहे प्रथम शताब्दी के मसीहियों को लिख रहा था l पतरस निर्देश देता है : “अतः सब के सब एक मन और कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय, और नम्र बनो” (1 पतरस 3:8 ) l शायद पतरस कह रहा था कि जो मनुष्य संकट में हैं उनके साथ मनुष्य ही बनना होगा, यह याद रखने के लिए कि हम सब एक से हैं l आखिरकार, क्या परमेश्वर अपने पुत्र को भेजकर ऐसा ही नहीं किया l वह हमारी सहायता करने के लिए मनुष्य बना? (फ़िलि. 2:7) l
अपने पतित हृदयों के भीतर झाँकने पर, अपने मानवीय अवस्था का तिरस्कार एक परीक्षा की तरह है l किन्तु क्या होगा यदि हम अपने संसार में अपने इंसानियत को अपने बलिदान का एक भाग बना दें? यीशु हमें पूर्ण मनुष्य बनाकर जीना सिखाता है, सेवक के समान जो पहचानते हैं कि हम सब एक से हैं l परमेश्वर हमें “मनुष्य” ही बनाया है, अपनी समानता और स्वरुप में बनाया है और अपने शर्तहीन प्रेम से छुड़ाया है l
आज हम लोगों को अनेक संघर्षों से सामना करते पाते हैं l अंतर की कल्पना करें जो हम मनुष्य बनकर ला सकते हैं अर्थात् उन लोगों की मदद करनेवाले साथी मनुष्य जो संकट में हैं l
परमेश्वर को जानना और खुद को जानना ही दीनता है l