क्रिसमस के बाद, अक्सर मैं आने वाले वर्ष के बारे सोचती हूँ और परखती हूँ कि पिछला वर्ष मुझे कहाँ लाया और अगले में कहाँ पहुँचने की मैं आशा कर सकती हूँ। एक नए वर्ष के आरम्भ की बात मुझे आशा और अपेक्षा से भर देती है। लगता है, कि पिछले साल में चाहे जो भी हुआ हो, मेरे पास फिर से आरम्भ करने का अवसर है।

नए आरम्भ की मेरी कल्पना उस आशा के समाने फ़ीकी पड़ जाती है जिसे इस्राएलियों ने तब अनुभव किया होगा जब बाबुल में सत्तर साल की लम्बी बंधुआई के बाद उनके देश यहूदा लौट जाने के लिए उन्हें मुक्त किया गया था। पिछले राजा नबूकदनेस्सर ने  इस्राएलियों को उनके अपने देश से निर्वासित कर दिया था। परन्तु परमेश्वर ने राजा कुस्रू से बंधकों को यहोवा के भवन के पुनर्निर्माण के लिए उनके घर यरूशलेम भेज देने को कहा (एज्रा 1: 2-3)। कुस्रू ने उन्हें वे खजाने भी लौटा दिए जिन्हें यहोवा के भवन से लाया गया था। पापों के कारण बाबुल में कठिन और लंबा समय बिताने के बाद उनके जीवन का नया  आरम्भ उस स्थान पर हुआ जिसे परमेश्वर ने उनके लिए ठहराया था।

अतीत में किए अपने पापों का जब हम अंगीकार करते हैं, परमेश्वर हमें क्षमा और नया आरम्भ देते हैं।