यह “कैंसर” है। जब माँ ने कहा तो मन पक्का करने की कोशिश पर भी मेरे आंसू छलक आए। उन शब्दों को कोई नहीं सुनना चाहेगा। कैंसर के साथ माँ का तीसरी बार सामना था। उनकी बाँह के नीचे एक घातक ट्यूमर हुआ था।
अय्यूब के समान। जिसने अपनी संतान, संपत्ति और स्वास्थ्य खो दिए थे। परन्तु यह सुनने के बाद, वह “भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया”। परमेश्वर को शाप देने की सलाह पर उसने कहा, “क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें” (2:10)? यद्यपि अय्यूब ने बाद में शिकायत की, पर अंततः स्वीकार किया कि परमेश्वर कभी बदले नहीं थे। अय्यूब जानता था कि परमेश्वर अब भी उसके साथ थे और वह अब भी उसकी परवाह करते थे।
“समस्याओं में प्रशंसा करने की हममें से अधिकांश की प्रारंभिक प्रतिक्रिया नहीं होती। कभी तो भय या क्रोध से हम बौखला उठते हैं। परन्तु माँ की प्रतिक्रिया देखकर मुझे याद आया कि परमेश्वर अब भी उपस्थित हैं, अभी भी अच्छे हैं। वह कठिन समय से हमारी मदद करेंगे।
अपनी सबसे कमज़ोर स्थिति में हम परमेश्वर की ओर अपनी आँखें लगा सकते हैं।