कलीसिया से लौटते हुए सफ़र में, मेरी बेटी गोल्डफिश क्रैकर खा रही थी। और मेरे अन्य बच्चे उसे बाँट कर खाने के लिए बार-बार कह रहे थे। बात बदलने के लिए, मैंने पूछा, “तुमने आज क्लास में क्या किया”? उसने कहा कि उन्होंने रोटी और मछली की एक टोकरी बनाई थी क्योंकि एक लड़के ने यीशु को पांच रोटियां और दो मछली दीं थी जिसका प्रयोग यीशु ने 5,000 लोगों को खिलाने के लिए किया था (यूहन्ना 6:1–13)।
अपने लंच को दूसरों के साथ बाँटना उस लड़के के उदारता थी। क्या तुम्हें भी अपनी मछली को बाँट कर नहीं खाना चाहिए? मैंने पूछा। उसने कहा “नहीं माँ। हर किसी के लिए काफ़ी नहीं है!”
जो दिख रहा हो बाँटना कठिन होता है। शायद हम गिनते और तर्क करते हैं कि हर किसी के लिए काफ़ी नहीं होगा। और सोचते है कि अगर मैं दे दूं, तो मेरे पास नहीं होगा।
पौलुस कहते हैं कि जो कुछ हमारे पास है वह परमेश्वर से आता है, जो हमें फलवन्त करना चाहते हैं “हर बात में जिससे [हम] उदार बनें” (2 कुरिन्थियों 9:10–11)। स्वर्ग का गणित आभाव का नहीं वरन बहुतायत का है। जब हम दूसरों के प्रति उदार होते हैं तब परमेश्वर हमारा ध्यान रखने का वादा करते हैं।
जब हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर भले हैं, तो हम दूसरों पर अपनी मुट्ठी खोलना सीख सकते हैं।