एक रिश्तेदार के साथ खरीदारी करते हुए मेरी सास गुम हो गई, तो मेरी पत्नी और मैं अत्यधिक चिंतित थे। उन्हें भूलने और भ्रम की बीमारी थी, पता नहीं ऐसी अवस्था में वह क्या करेंगी। हमने उन्हें खोजना शुरू कर दिया, और परमेश्वर को यह कहते हुए पुकारा,” कृपया उन्हें ढूंढिए”।
कुछ घंटे बाद वह मीलों दूर सड़क पर वह मिल गईं। उन्हें खोजने में सक्षम बनाने में परमेश्वर ने हमें कैसे आशीष दे दीथी। महीनों बाद मसीह ने उन्हें आशीषित किया। अस्सी वर्ष की आयु में, उद्धार पाने के लिए मेरी सास ने यीशु मसीह को ग्रहण किया।
यीशु, मनुष्य की तुलना भेड़ों से करते हुए, कहते हैं: तुम में से कौन है जिस की सौ भेड़ें हों, और उन में से एक खो जाए…(लूका 15:4–6)।
चरवाहों ने अपनी भेड़ों को इसलिए गिना, ताकि हर एक का पता लगा सके। यीशु, जो स्वयं की तुलना उस चरवाहा के साथ करते हैं, हम सभी को मूल्यवान मानते हैं। हम अपने जीवन में भटक रहे हों, खोज कर रहे हों या अपने उद्देश्य के बारे में विचार कर रहे हों तो मसीह के पास जाने के लिए कभी देर नहीं होती। परमेश्वर की यही इच्छा है कि हम उनके प्रेम और आशीषों का अनुभव करें।
अनोखा अनुग्रह!...मैं कभी खोया था, पर अब मैं मिल गया हूँ। जॉन न्यूटन