2010 में सिंगापुर के एक समाचारपत्र में 8 वरिष्ठ नागरिकों की जीवन-शिक्षा पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित हुई:जहां उम्र बड़ने से मानव शरीर और मन के लिए चुनौतियां आती हैं वहां यह दूसरे क्षेत्र में विस्तार भी होता है। इसमें भावनात्मक और सामाजिक समझ से भरा ऐसा गुण है जिसे वैज्ञानिक ज्ञान के रूप में परिभाषित करते हैं…उम्र का ज्ञान।
जीवन के बारे में सिखाने को बुद्धिमान बूढ़ों के पास बहुत कुछ होता है। परंतु बाइबिल में हम ऐसे नए राजा से मिलते हैं जो यह नहीं समझ सका।
सुलेमान की मृत्यु के बाद इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर यों कहने लगी… (1 राजा 12:3-4)। पहले उसने बूढ़ों से सम्मति ली फिर उसे छोड़कर उन जवानों की सम्मति मान कर जो उसके संग बड़े हुए थे, वह लोगों का बोझ और बढ़ा देता है (पद 6,8)। जिस मूर्खता के लिए उसने अपने राज्य का एक बड़ा भाग खो दिया।
हम सबको उस सम्मति की आवश्यकता होती है जो वर्षों के अनुभव से आती है। विशेषकर उनकी जो परमेश्वर के साथ चले हैं और उनकी सम्मति मान चुके हैं। उस ज्ञान के बारे में सोचिए जो परमेश्वर ने उन्हें दिया है! हमारे साथ बाँटने के लिए उनके पास बहुत कुछ है। आइए उन्हें खोजें और उनके ज्ञान से सीखें।
युवावस्था की गलतियों से बचने के लिए, उम्र के ज्ञान से सीखें।