मैंने अपने पिता को अछूते खेतों की जुताई करते देखा है। हल का फल पहले चक्कर में बड़े पत्थरों की ढुलाई करता। मिट्टी तोड़ने के लिए वह खेत पर बार-बार हल चलाते, और हर चक्कर में हल अन्य छोटे पत्थरों को निकाल लाता जिन्हें वह अलग फेंक देते। यह प्रक्रिया चलती रहती जिसमे खेत के कई चक्कर लग जाते थे।
अनुग्रह का बढ़ना इसी प्रक्रिया के समान है। जब हम पहली बार विश्वास करते हैं, तो कुछ “बड़े” पाप खुलते हैं जिनका अंगीकार करके हम परमेश्वर की क्षमा स्वीकार करते हैं। परंतु जब परमेश्वर का वचन धीरे-धीरे हमारे भीतरी अस्तित्व में गढ़ता है, पवित्र आत्मा अन्य पापों से पर्दा उठाती है। कभी छोटी भूल रहीं-महत्वहीन गलतियां-बदसूरत विनाशकारी और रूखे काम लगने लगते हैं। पाप जैसे अभिमान, आत्मदया, कुडकुडाना, तुच्छपन, पूर्वाग्रह, बैर और आत्म-सेवा।
परमेश्वर हमारे पापों को प्रकट करते हैं, इन्हें हम से दूर करने के लिए। जिससे वह हमें चंगाई दे सकें। जब हमारी दबी घातक मानसिकता प्रकट होती है तो भजनकार दाऊद के समान हम प्रार्थना कर सकते हैं, “हे यहोवा अपने नाम के निमित्त…(भजन संहिता 25:11)। विनम्र अनावरण भले ही पीड़ादायक हों, पर आत्मा के लिए अच्छे होते हैं। यह “पापियों की अगुवाई अपने मार्गो पर” करने का उनका तरीका है। वह पापियों को अपना मार्ग…(भजन 25:8-9)।
यीशु हमें वैसे ग्रहण करते हैं जैसे हम हैं और वैसा बनाते हैं जैसा वह चाहते हैं।