मेरी मित्र ने कैंसर के उपचार के दौरान मुझे देर रात फ़ोन किया। उसके रुदन से मेरा दिल भर आया और मैंने प्रार्थना की। हे प्रभु, मैं क्या करूं?
उसके रुदन ने मेरा दिल चीर डाला। उसकी पीड़ा को कम या उसकी स्थिति को सही या उसे प्रोत्साहित करने के लिए मैं कुछ ना कर सकी। परंतु मैं जानती थी कि कौन सहायता कर सकते हैं। प्रार्थना में मुश्किल हुई तो मैं फुसफुसाई यीशु, यीशु, यीशु।
उसका रोना सिसकियों में बदल कर धीमी सासों में थम गया। उसके पति ने बताया कि, “वह सो गई है” । “हम कल फोन करेंगे।” फोन रख कर मैंने रोते-रोते प्रार्थना की।
प्रेरित मरकुस ऐसे पिता की कहानी बताता है शैतान के चुंगल में फंसे अपने पुत्र को यीशु के पास लाया (मरकुस 9:17)। अपनी जटिल समस्या के वर्णन केk साथ उसकी प्रार्थना में संदेह था (पद 20-22)। उसने यीशु से उसके अविश्वास का उपाय करने को कहा। यीशु के नियंत्रण लेते ही पिता और पुत्र को मुक्ति और शांति मिली (पद 25-27)।
हमारे प्रियजनों को पीड़ा हो तो स्वभाविक तौर पर हम सही करना चाहते हैं, परंतु केवल प्रभु यीशु ही हमारी सहायता कर सकते हैं। यीशु नाम पुकारने से, वे उनके सामर्थ और उपस्थिति पर विश्वास करने में हमें सक्षम बनाते हैं।
यीशु का नाम वह समर्थपूर्ण प्रार्थना है जो हमें उनकी सामर्थी उपस्थिति में ले जाता है।