हवा का शोर, बिजली का कौंधना, लहरों का टक्करना। मुझे लगा मैं मरने वाला था। झील में दादा-दादी समेत मछली पकड़ते हुए काफ़ी देर हो चुकी थी। सूरज ढलते ही हमारी नाव के ऊपर से तेज़ हवा गुजरी। नाव ना पलटे इसलिए दादाजी ने मुझे सामने बैठा दिया। दिल डर से भर गया। मैंने प्रार्थना आरंभ कर दी। मैं तब 14 वर्ष का था।
मैंने परमेश्वर से उनके आश्वासन और सुरक्षा को मांगा। तूफान नहीं थमा, परंतु हम किनारे पहुंच गए। परमेश्वर की उपस्थिति की गहन निश्चितता का अनुभव अभूतपूर्व था।
यीशु तूफान से अनभिज्ञ नहीं हैं। मरकुस 4: 35-41 में उन्होंने चेलों को झील के पार जाने को कहा जो जल्द तूफानी और क्रूर होने वाली थी। तूफान ने इन मछुआरों की परीक्षा ली और उन्हें सर्वश्रेष्ठ बना दिया। उन्हें भी लगा कि वे मरने वाले हैं, परंतु यीशु ने तूफान शांत और चेलों के विश्वास को गहरा किया।
हमारे तूफानों में यीशु हमें उनपर भरोसा करने को आमंत्रित करते हैं। कभी-कभी वह अद्भुत रूप से हवाओं और लहरों को, तो कभी हमारे मन को शांत करते हैं। और उनपर भरोसा करने में हमारी सहायता करते हैं। वह हमें इस विश्वास में स्थिर रहने को कहते हैं कि उनके पास लहरों से कहने का सामर्थ है, “शांत हो जाओ”।
कोई संकट हमारे इतने पास नहीं आ सकता कि बचाने के लिए परमेश्वर अधिक पास न हों।