पिछले 30 वर्षों के अंतराल में मेरे गृह-शहर ने इस वर्ष सबसे अधिक सर्दी के मौसम का अनुभव किया था l घंटों बर्फ को बेलचे से साफ़ करते हुए मेरी बाँहें दर्द करने लगीं l अपने प्रयास को व्यर्थ समझकर जब मैं थकी हुई घर के अन्दर आयी, जलती हुई आग की गर्मी मुझे मिली जिसके चारों-ओर मेरे बच्चे थे l घर के अन्दर से खिड़की से देखने पर मौसम के प्रति मेरा दृष्टिकोण बिलकुल बदला हुआ था l यह न देखकर कि मेरे पास बहुत काम है, मैंने पेड़ों पर जमीं बर्फ की खूबसूरती देखी और किस तरह पूरा परिदृश्य बर्फ से ढका हुआ था l

भजन 73 में आसाप के शब्दों को पढ़ते हुए, मैं उसके समान, बल्कि और अधिक मार्मिक अंतर देखती हूँ l प्रारम्भ में, वह संसार के कार्य करने के तरीके पर दुखित हुआ, अर्थात् किस तरह बुरे लोगों का कुशल होता है l वह भीड़ से अलग जीवन जीने के महत्त्व पर एवं दूसरों की भलाई के लिए जीवन पर शक करता है (पद.13) l किन्तु जब वह परमेश्वर के पवित्रस्थान में प्रवेश करता है, उसका दृष्टिकोण बदल जाता है (पद.16-17) : वह स्मरण करता है कि परमेश्वर संसार के साथ और उसकी समस्याओं के साथ न्याय करेगा, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, कि परमेश्वर के साथ रहना भला है (पद.28) l

जब हम अपने संसार के अनवरत समस्याओं से प्रभावित होते हैं, हम प्रार्थना में परमेश्वर के पवित्रस्थान में प्रवेश करके जीवन-परिवर्तन करनेवाली, दृष्टिकोण- बदलनेवाली सच्चाई की गर्माहट प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् उसका निर्णय हमारे निर्णय से उत्तम है l भले ही हमारी परिस्थितियां न बदलें, हमारी दृष्टिकोण बदल सकती है l