उम्र में बढ़ते समय मैं अपनी दो बहनों के साथ देवदार की लकड़ी से बनी एक बक्से पर जो मेरी माँ की थी बैठना पसंद करती थी l मेरी माँ ऊन से बने हमारे स्वेटरों को उसमें रखती थी और हाथ के बने काम जो मेरी दादी ने कढ़ाई अथवा क्रोशिया से बनाए थे l उसके लिए वह बक्सा महत्वपूर्ण था l वह देवदार लकड़ी पर भरोसा करती थी जिसकी तेज़ महक अन्दर के सामान को कीट आदि से बचा सकती थी l
संसार की अधिकतर वस्तुएं आसानी से कीट अथवा मोर्चे से खराब हो सकते हैं अथवा उनके चोरी होने का डर होता है l मत्ती 6 हमें सीमित जीवन-अवधि वाली वस्तुओं पर नहीं किन्तु अनंत मूल्य वाले वस्तुओं पर विशेष ध्यान देने को प्रोत्साहित करता है l जब 57 वर्ष की उम्र में मेरी माँ की मृत्यु हुयी, उन्होंने अधिक सांसारिक वस्तुएं इकठ्ठा नहीं किया था, किन्तु मैं उस धन के विषय विचार करना चाहती हूँ जो उन्होंने स्वर्ग में इकट्ठा किया था (पद.19-20) l
मैं याद करती हूँ कि वह परमेश्वर को कितना अधिक प्यार करती थी और शांत तरीकों से उसकी सेवा करती थी : विश्वासयोग्यता से अपने परिवार की देखभाल, सन्डे स्कूल में बच्चों को पढ़ाना, पति द्वारा त्यागी गयी स्त्री से मित्रता निभाना, एक युवा माँ से सहानुभूति रखना जिसके बच्चे की मृत्यु हो चुकी थी l और वह प्रार्थना भी करती थी . . . . अपनी दृष्टि खोने के बाद भी और व्हील चेयर तक सीमित होने पर भी, वह दूसरों को प्यार और उनके लिए प्रार्थना करती रही l
जो हम इकठ्ठा करते हैं वह हमारे वास्तविक धन का माप नहीं है किन्तु हम क्या और किसमें अपना समय और मनोभाव निवेश करते हैं l हम सेवा और यीशु का अनुसरण करने के द्वारा कौन सा “धन” स्वर्ग में इकठ्ठा कर रहे हैं?
अनंत के लिए निवेश किया गया धन ही हमारा वास्तविक धन है l