बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपने युवावस्था में बारह सद्गुणों की सूची बनाए थे जिनमें वे अपने जीवन काल में उन्नत्ति करना चाहते थे l उन्होंने उस सूची को अपने मित्र को दिखाया, जिसने उन्हें उसमें “विनम्रता” जोड़ने को कहा l फ्रैंकलिन को यह विचार पसंद आ गया l उनके मित्र ने हर एक गुण में उसकी सहायता के लिए कुछ मार्गदर्शिका भी जोड़ दीं l विनम्रता के सम्बन्ध में फ्रैंकलिन के विचारों में, उसने उसका अनुकरण करने के लिए यीशु का उदहारण दिया l
यीशु हमें विनम्रता का सर्वश्रेष्ठ नमूना देता है l परमेश्वर का वचन हमें बताता है, “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; जिसने परमेश्वर के स्वरुप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा l वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरुप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया” (फ़िलि.2:5-5) l
यीशु ने सबसे महान विनम्रता प्रस्तुत की l पिता के साथ अनंतता से होने के बावजूद, उसने प्रेम में क्रूस के नीचे झुकने का चुनाव किया कि अपनी मृत्यु के द्वारा वह हर एक को उन्नत कर सके जो उसके प्रेम की उपस्थिति में उसे स्वीकार करता है l
हम दूसरों की सेवा करके अपने स्वर्गिक पिता की सेवा करने का प्रयास करते हैं और इस तरह यीशु की विनम्रता का अनुसरण करते हैं l यीशु की दया हमें दूसरों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अलग करके अलगाव की सुन्दरता का असाधारण झलक लेने देता है l “सर्व प्रथम मैं” [अहम्] वाले संसार में विनम्र बनना सरल नहीं है l किन्तु हमारे उद्धारकर्ता के प्रेम में विश्राम करते समय, वह हमें उसका अनुसरण करने के लिए सब कुछ देगा l
हमें प्रेम किया गया है इसलिए हम सेवा कर सकते हैं l