“मनभावन!”
एक सुबह मेरी बेटी तैयार होते समय उपरोक्त विस्मयबोधक शब्द कहे l मैं नहीं जानता वह क्या कहना चाहती थी l उसके बाद उसने अपने चचेरे भाई से मिली शर्ट को थपथपाया l उस शर्ट के सामने “मनभावन” शब्द अंकित था l मैंने उसे गले लगाया, और वह पवित्र प्रेम से मुस्करा दी l “तुम मनभावन हो!” मैंने दोहराया l उसकी मुस्कराहट और बड़ी हो गयी होती, और अगर ऐसा संभव होता, और वह उन शब्दों को दोहराते हुए कूदती हुयी चली गयी l
मैं एक सिद्ध पिता नहीं हूँ l किन्तु वह क्षण सिद्ध था l उस स्वाभाविक, खूबसूरत बातचीत में, मैंने अपनी बेटी के दीप्तिमान चेहरे में शर्तहीन प्रेम को परिभाषित देखा l वह ख़ुशी की छवि थी l उसे मालूम था कि उसके शर्ट पर अंकित शब्द उसके विषय उसके पिता की भावना से पूरी तरह मेल खा रहा था l
हममें से कितनों को गहराई से मालूम है कि हमारे स्वर्गिक पिता हमसे असीमित प्रेम करते हैं? कभी-कभी हम सच्चाई से संघर्ष करते हैं l इस्राएली संघर्ष करते थे l उनकी सोच थी कि उनकी परीक्षा का अर्थ था कि अब परमेश्वर उनसे प्रेम नहीं करता है l किन्तु यिर्मयाह 31:3 में, नबी, अतीत में परमेश्वर द्वारा कही गयी बातें याद दिलाता है : “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ l” हमें भी ऐसा शर्तहीन प्रेम चाहिए l फिर भी चोट, निराशाएँ, और गलतियां हमें मनभावन महसूस होने नहीं देती l किन्तु सिद्ध परमेश्वर अपनी बाहें फैलाकर हमें अपने प्रेम का अनुभव करने और उसमें विश्राम करने को आमंत्रित करता है l
हमारे स्वर्गिक पिता की तरह हमें कोई और प्रेम नहीं करता है l