जब हमदोनों पति-पत्नी मेरी ननद के निकट रहने के लिए सिएटल(अमरीकी शहर) गए, हम नहीं जानते थे  कि हम किस जगह रहेंगे या काम करेंगे l एक स्थानीय चर्च ने एक स्थान ढूंढने में हमारी सहायता की : एक किराये का घर जिसमें अनेक सोने के कमरे थे l हम एक सोने का कमरा अपने लिए रखते हुए, दूसरे कमरे अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को दे सकते थे l अगले तीन वर्षों में, हम परदेशी होकर परदेशियों का स्वागत करते रहे : हमने समस्त संसार के लोगों के साथ अपने घर और भोजन को बाँटा l हम और हमारे साथ रहनेवालों ने दर्जनों अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को प्रति शुक्रवार अपने घर में बाइबल अध्ययन के लिए आमंत्रित किया l

परमेश्वर के लोग घर से दूर रहने का अर्थ जानते हैं l सैंकड़ो वर्षों तक, इस्राएली पूरी तौर से  मिस्र में परदेशी और दास थे l लैव्यव्यवस्था 19 में, “अपने माता-पिता का आदर करो” और “चोरी मत करो” (पद.3,11), जैसे परिचित निर्देशों के साथ-साथ परमेश्वर ने प्रभावशाली तरीके से परदेशियों की देखभाल करना याद दिलाया, क्योंकि उन्हें मालुम था कि परदेशी और भयभीत रहने का क्या अर्थ होता है (पद.33-34) l

जबकि हम सब जो आज परमेश्वर के अनुयायी हैं, हमने वस्तुतः निर्वासित जीवन नहीं जीया है, फिर भी हम जानते हैं कि इस पृथ्वी पर “परदेशी” (1 पतरस 2:11) अर्थात् ऐसे लोग जिन्हें परदेशी होने का अनुभव मालूम है क्योंकि उनकी अंतिम निष्ठा एक स्वर्गिक राज्य की है l हमसे पहुनाई करनेवाले समुदाय का निर्माण करने को कहा गया है अर्थात् परदेशी जो परदेशियों को परमेश्वर के परिवार में आमंत्रित करते हैं l हम दोनों पति-पत्नी ने सिएटल में जिस सत्कार शील निमंत्रण का अनुभव किया, उसने हमें इसे दूसरों तक पहुँचाना सिखाया और यह परमेश्वर के परिवार का केंद्र बिंदु है (रोमियों 12:13) l