जब मैं लन्दन, घर जाने के लिए सामन पैक कर रही थी, मेरी माँ मेरे लिए एक उपहार लेकर आई – उनकी एक अंगूठी जो मुझे बहुत पसंद थी l चकित होकर, मैंने पूछा, “यह किस लिए?” उन्होंने उत्तर दिया, “मेरे विचार से अब तुम इसको पहनने का आनंद लो l मेरी मृत्यु तक इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत है? कैसे भी यह मेरी ऊँगली में आती भी नहीं है l” मुस्कराकर मैंने उनका अनापेक्षित उपहार प्राप्त किया, आरंभिक विरासत जो मेरे लिए आनंद का कारण है l

मेरी माँ ने मुझे एक भौतिक उपहार दी, किन्तु यीशु की प्रतिज्ञा है कि उसका पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा देगा (लूका 11:13) l यदि पाप के साथ जन्में माता-पिता अपने बच्चों की ज़रूरतें(जैसे भोजन) पूरी करते हैं, तो हमारा स्वर्गिक पिता अपने वच्चों को और भी अधिक देगा l पवित्र आत्मा के वरदान के द्वारा(यूहन्ना 16:13), हम परेशानी के समय आशा, प्रेम, आनंद, और शांति का अनुभव कर सकते हैं और हम इन वरदानों को दूसरों के साथ बाँट सकते हैं l

उम्र में बढ़ते हुए, शायद हमारे माता-पिता पूरी तौर से हमसे प्रेम नहीं कर सके और हमारी देखभाल नहीं कर सके l अथवा हमारे माता-पिता बलिदानी प्रेम के प्रशिद्ध नमूना थे l अथवा हमारा अनुभव इन दोनों के बीच था l जो भी हमने अपने सांसारिक माता-पिता के विषय जाना है, हम इस प्रतिज्ञा को थामे रह सकते हैं कि हमारा स्वर्गिक पिता हमसे अत्यधिक प्रेम करता है l उसने अपने बच्चों को पवित्र आत्मा का उपहार दिया है l