मेरे द्वारा 1988 से लेकर अब तक हमारी प्रतिदिन की रोटी के लिए लिखे गए सैंकड़ों लेखों में से, कुछ एक मेरे मन में बस गए हैं l उनमें से एक लेख 1990 के दशक के मध्य का है जिसमें मैंने लिखा था कि हमारी तीन बेटियाँ कैंप या मिशन दौरे पर गयी हुई थीं, इसलिए छः साल का स्टीव और मैंने कुछ मनोरंजक समय एक साथ बिताए l
एयरपोर्ट की ओर सैर पर जाते समय, स्टीव ने मुड़कर मुझसे कहा, “मलेस्सा के बिना उतना आनंद नहीं है l” मलेस्सा उसकी आठ वर्षीय बहन और दिलीदोस्त थी l उस समय हममें से कोई नहीं जानता था कि उसके वे शब्द कितने हृदयस्पर्शी होंगे l कार दुर्घटना में किशोरी मेलेस्सा की मृत्यु के बाद के वर्षों में जीवन “उतना आनंददायक” नहीं रहा है l बीच का समय दर्द को कम कर सकता है, किन्तु कोई भी दर्द को पूरी रीति से मिटा नहीं सकता l समय घाव को भर नहीं सकता है l लेकिन यहाँ कुछ है जिससे सहायता मिल सकती है : ढाढ़स देनेवाले परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञात दिलासा को सुनें, उस पर चिंतन करें, और उसका स्वाद लें l
सुनें: “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरूणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है l (विलापगीत 3:22) l
चिंतन करें: वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने मण्डप में छिपा रखेगा l (भजन 27:5) l
स्वाद लें: मेरे दुःख में मुझे शांति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है l (119:50) l
किसी प्रिय की मृत्यु के बाद जीवन फिर कभी भी पहले जैसा नहीं होता l किन्तु परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ आशा और शांति/दिलासा लेकर आती हैं l
परमेश्वर का वचन शांति का सच्चा श्रोत है l