शादी के एक हफ्ते पहले, सारा की सगाई टूट गई। उदास और निराश होने के बावजूद, उसने रिसेप्शन के खाने को बेकार ना जाने देने का फैसला किया। उत्सव की योजना और अतिथियों की लिस्ट बदल कर उसने स्थानीय आश्रय स्थलों के निवासियों को भोज में बुलाया।
फरीसियों को स्वार्थहीन दया करने के महत्व को समझाने के लिए यीशु ने कहा, “जब तू भोज करे…” (लूका 14:13-14)। उन्होंने कहा कि तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास बदले में मेज़बान को देने के लिए कुछ नहीं। यीशु ने उन लोगों की मदद करने की अनुमति दी जो ना तो दान दक्षिणा, न दिलचस्प बातें और नाही ऊंची जान-पहचान से इसकी आपूर्ति कर सकें।
यदि विचार किया जाए कि यीशु ने ये वचन तब कहे जब वे एक फरीसी के दिए भोज में बैठे थे तो, उनका कथन भडकाने वाला और उग्र लगेगा। परन्तु सच्चा प्रेम उग्र होता है। बदले में बिना कुछ पाने के उम्मीद किए दूसरों की मदद करना प्रेम है। इसी समान यीशु ने हम में से प्रत्येक से प्रेम किया। उन्होंने हमारी भीतरी दरिद्रता को देखकर हमारे लिए अपना जीवन दे दिया।
मसीह को व्यक्तिगत रूप से जानना, उनके अनंत प्रेम की थाह लेना है। हम सभी आमंत्रित हैं कि यह जानें कि “मसीह के प्रेम की चौड़ाई…” (इफिसियों 3:18)।
हमारे लिए पिता का प्रेम कितना गहरा है!