मेरे मित्र के घर की बैठक धीरे-धीरे ज़मीन में घंस रही थी-दीवारों पर दरारें थीं और अब खिड़की नहीं खुलती थी। उन्हें पता चला कि इस कमरे की नींव नहीं थी। इसे सुधारने के लिए महीनों कार्य चला क्योंकि बिल्डर को नई नींव डालनी पड़ी।
बाद में देखा तो दरारें नहीं थीं और खिड़की खुल रही थी। तब मुझे एक ठोस नींव के मायने समझ आए।
यह हमारे जीवन में भी सत्य है।
यीशु ने उनकी बातों को अनसुना करने की मूर्खता को समझाने के लिए बुद्धिमान और मूर्ख बिल्डर का दृष्टान्त सुनाया (लूका 6:46-49)। उनकी बातें सुनकर पालन करने वाले उस व्यक्ति के समान होते हैं जो एक मजबूत नींव पर घर बनाते हैं। बजाय उसके जो सुनकर उनकी आज्ञाओं की अवहेलना करते हैं। यीशु ने अपने श्रोताओं को आश्वासन दिया कि तूफान आने पर उनका घर खड़ा रहेगा। उनका विश्वास न डिगेगा।
इस बात में हमें शांति मिलती है कि यीशु की बात सुनने और मानने से वह हमारे जीवन की नींव मजबूत बनाते हैं। बाइबिल पढ़ने, प्रार्थना करने और अन्य मसीहियों से सीखने द्वारा हम उनके लिए अपने प्रेम को मजबूत कर सकते हैं। फिर जब तूफान आएगा-चाहे विश्वासघात, पीड़ा या निराशा-हमें भरोसा रहेगा कि हमारी नींव मजबूत है। हमारा उद्धारकर्ता वह सहायता प्रदान करेगा जिसकी हमें जरूरत होगी।
यीशु की बात सुनना और उस पर पालन करना हमारी ज़िंदगी को एक मजबूत नींव बनता है।