कल मैंने अपनी बड़ी बेटी के लिए जो कॉलेज जानेवाली थी, हवाई जहाज़ का टिकट खरीदा l मुझे आश्चर्य हुआ कि हवाई यात्रा का टिकट चुनने की प्रक्रिया में मेरे बहते आंसुओं से मेरे कंप्यूटर का कीबोर्ड भीग जाने के बावजूद वह काम कर रहा था l मैंने अपनी बेटी के साथ अठारह वर्षों तक दैनिक जीवन का आनंद उठाया है, इस कारण मैं उसके जाने की बात से दुखी हूँ l यह जानकार भी कि वह मुझसे दूर हो जाएगी, मैं उसे उसके भावी जीवन के अवसर से वंचित नहीं कर सकती l उसके जीवन के इस मुकाम पर, उसके लिए वयस्कता को समझना और देश के एक दूसरे भाग को जानने के लिए नयी यात्रा पर जाना उचित है l

जबकि बेटी की परवरिश का मेरा समय समाप्त हो रहा है, एक और समय आरम्भ हो रहा है l उसमें अवश्य ही चुनौतियां और खुशियाँ दोनों होंगी l इस्राएल का तीसरा राजा, सुलैमान, लिखता है कि परमेश्वर “हर एक बात का एक अवसर, और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय” नियुक्त किया है (सभोपदेशक 3:1) l हम मनुष्यों का अपने जीवन की घटनाओं पर बहुत कम नियंत्रण है – चाहे हम उन घटनाओं को अपने पक्ष में देखें या नहीं l किन्तु परमेश्वर, अपनी महान सामर्थ्य में, “सब कुछ ऐसा [बनाता है] कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं” (पद.11) l

मानसिक व्यथा के समयों में, हम भरोसा करते हैं कि परमेश्वर समय पर उससे कुछ भलाई उत्पन्न करेगा l हमारे सुख और आनंद आ सकते हैं और जा सकते हैं, किन्तु परमेश्वर का काम “सदा स्थिर रहेगा” (पद.14) l हम सभी समयों को पसंद नहीं करेंगे – उनमें से कुछ बहुत दुःख भरे होंगे – फिर भी वह उन सब को खुबसूरत बना सकता है l