अनेक वर्षों तक एंजी अपनी पढ़ाई में संघर्ष करती रही, जिसके बाद उसे, सर्वोत्कृष्ट प्रार्थमिक स्कूल से निकाल कर एक “साधारण” स्कूल में भर्ती कर दिया गया l सिंगापुर में जहां बहुत ही प्रतियोगी शिक्षा का परिदृश्य है, जहां एक “अच्छे” स्कूल में किसी की भावी संभावनाएं सुधर सकती है, अनेक लोगों ने इसे पराजय के रूप में देखा l
एंजी के माता-पिता निराश थे, और एंजी ने भी खुद के विषय सोचा मानो उसे नीचे उतार दिया गया है l किन्तु नये स्कूल में जाने के शीघ्र बाद, नौ वर्ष की एंजी समझ गयी कि औसत विद्यार्थियों की क्लास में पढ़ने का क्या अर्थ होता है l उसने कहा, “माँ, मैं सही जगह पर हूँ, यहाँ मैं स्वीकारी गयी हूँ!”
मैंने इस बात को याद किया कि जक्कई कितना उत्साहित हुआ होगा जब यीशु ने खुद ही उस चुंगी लेनेवाले के घर में जाने को तैयार हुआ होगा (लूका 19:5) l मसीह ने उन लोगों के साथ भोजन करने में रूचि लिया जिन्हें मालूम था कि वे दोषपूर्ण हैं और परमेश्वर के अनुग्रह के योग्य नहीं (पद.10) l हम जैसे भी हैं, यीशु हमें खोजकर और हमसे प्रेम करके अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा पूर्ण करने की प्रतिज्ञा देता है l हम उसके अनुग्रह द्वारा ही सिद्ध बनाए जाते हैं l
यह जानते हुए कि मेरा जीवन परमेश्वर के मानक के बराबर नहीं है, मैंने अक्सर अपनी आत्मिक यात्रा को संघर्षशील पाया है l यह जानना कितना आरामदायक है कि हम सर्वदा स्वीकार्य हैं, क्योंकि पवित्र आत्मा हमें यीशु की तरह बनाने में लगा हुआ है l
हम पूर्ण नहीं हैं, किन्तु हम स्वीकार्य हैं l