एनी फ्रैंक अपने दैनिकी लिखने के लिए लोकप्रिय है जिसमें उसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने परिवार के छिपने का वर्णन करती है l बाद में जब वह नाज़ी मृत्यु शिविर में कैद कर दी गयी, उनके साथ के लोगों ने कहा, “[उनके लिए] उसके आँसू कभी नहीं सूखते था,” जो उसे “उसके सभी जाननेवालों में धन्य उपस्थिति” बना देती थी l इस कारण, विद्वान केनेथ बेली यह निष्कर्ष निकालते हैं कि एनी “तरस दिखाने में कभी नहीं थकती थी l”

एक टूटे संसार में रहने का एक परिणाम तरस दिखाने में थकान हो सकती है l मानव दुःख का वास्तविक फैलाव हमारे बीच सर्वोत्तम इरादा रखनेवाले को भी स्तब्ध कर देता है l हलाकि, तरस दिखाने में श्रमित होना, यीशु के व्यक्तित्व में नहीं था l मत्ती 9:35-36 कहता है, “यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बिमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा l जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे” (मत्ती 9:35-36) l

हमारा संसार केवल भौतिक आवश्यकताओं से नहीं किन्तु आत्मिक टूटेपन से भी पीड़ित है l यीशु उस आवश्यकता को पूरा करने और अपने अनुयायियों को इस कार्य में मदद करने की चुनौती देने आया (पद.37-38) l उसकी प्रार्थना थी कि पिता हमारे चारोंओर अर्थात् अकेलापन, पाप, और बिमारी से संघर्षरत लोगों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए कार्यकर्त्ताओं को खड़ा करेगा l काश पिता दूसरों के लिए हमारे अन्दर इच्छा दे जो उसके हृदय को प्रतिबिंबित करता है l उसकी आत्मा की शक्ति में, हम उसके दयालु फ़िक्र को पीड़ितों पर दर्शा सकते हैं l