जब मेरे बच्चे छोटे थे मैं परिवार, मित्रगण के साथ उन समारोहों की यादें संजोए रखा हूँ l व्यस्क देर रात तक बातचीत करते थे; हमारे बच्चे खेल से थके हुए सिकुड़ कर सोफे या कुर्सी पर सो जाते थे l
जब जाने का समय होता था मैं अपनी बाहों में अपने बेटों को उठाकर अपनी कार के पीछे वाली सीट पर लेटाकर घर ले जाता था l घर पहुँचकर, मैं उनको उठाता, उनके बिस्तर बनाता और चूमकर उन्हें शुभ रात्रि बोलकर और बित्तियाँ बुझाकर उन्हें सुला देता था l सुबह उनकी नींद घर में खुलती थी l
मेरे लिए यह रात का बहुत अच्छा रूपक बन गया है जब हम “यीशु में सो जाएंगे” (1 थिस्स.4:14) l हम गहरी नींद में सो जाते हैं . . . और अपने अनंत घर में जागते हैं, ऐसा घर जो हमारे थकान को मिटा देगा जो हमारे जीवन के दिनों को चिन्हित करता था l
पिछले दिनों मेरे सामने पुराना नियम का एक भाग आया जिससे मैं चकित हो गया – व्यवस्थाविवरण की समापन टिप्पणी : “तब यहोवा के कहने के अनुसार . . . मूसा वहीं मोआब के देश में मर गया” (34:5) l इब्री भाषा में इसका शब्दशः अर्थ है, “मूसा . . . परमेश्वर के मुँह के साथ मरा,” प्राचीन रब्बियों द्वारा अनुदित एक वाक्यांश, अर्थात, “परमेश्वर के चूमने से l”
क्या यह कल्पना करना अधिक है कि परमेश्वर पृथ्वी पर की हमारी अंतिम रात को हम लोगों पर झुका हुआ है, हमें सुला रहा है और चूमकर शुभ रात्रि कहता है? तब, जिस प्रकार जॉन डॉन ने जोरदार तरीके से कहता है, “एक छोटी सी नींद जो बीत गयी है, हम अनंत में जागेंगे l”
मृत्यु समय से अनंतता में करवट लेने से अधिक नहीं है l -विलियम पेन