लगभग हर वक्त जब बाइबल में एक स्वर्गदूत प्रगट होता है, उसके प्रथम शब्द होते हैं “डरो मत!” छोटा आश्चर्य l जब अलौकिक, ग्रह पृथ्वी से संपर्क करता है, देखनेवाले मानव भय के मारे अपने मुहं के बल होते हैं l किन्तु लूका परमेश्वर का प्रगटन इस रूप में बताता है जो भयभीत नहीं करता l यीशु में, जो पशुओं के बीच जन्म लिया और जिसे चरनी में लिटाया गया, परमेश्वर ऐसे प्रवेश करता है जहाँ हमें डरने की ज़रूरत नहीं है l क्या एक नवजात शिशु से कम भयभीत करनेवाला कोई हो सकता है?

पृथ्वी पर यीशु परमेश्वर और मनुष्य दोनों ही है l परमेश्वर होकर, वह आश्चर्यकर्म कर सकता है, पाप क्षमा कर सकता है, मृत्यु को पराजित कर सकता है, और भविष्य बता सकता है l किन्तु यहूदियों के लिए जो परमेश्वर को एक चमकीला बादल या एक अग्नि स्तम्भ की छवि के रूप में देखने के आदि थे, यीशु गड़बड़ी भी पैदा करता है l बैतलहम का एक शिशु, एक बढ़ई का बेटा, नासरत का एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से एक उद्धारकर्ता कैसे हो सकता है?

परमेश्वर मानव रूप क्यों लिया? मंदिर में रब्बियों के साथ चर्चा करनेवाला बारह वर्ष का यीशु हमें एक सुराग देता है l “जितने उसके सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे” लूका कहता है (2:47) l पहली बार, साधारण लोग प्रत्यक्ष रूप में परमेश्वर के साथ बातचीत कर पा रहे थे l

यीशु किसी से भी बताए बिना बातचीत कर सकता था-अपने मातापिता से, एक रब्बी से, एक निर्धन विधवा से l “डरो मत!” यीशु में परमेश्वर निकट आ गया l