मेरे पिता के पास दिशा समझने की ऐसी समझ थी जिससे मुझे हमेशा ईर्ष्या होती थीl उन्हें बस पता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम किस तरफ हैंl यह ऐसे है जैसे कि वह इस बोध के साथ ही पैदा हुएl और उनका अनुमान हमेशा सही रहा था, उस रात तक जब यह गलत साबित हुआl

यह वह रात थी जब मेरे पिता जी खो गयेl वह और मेरी माँ एक अजनबी शहर में किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गये और जब वहाँ से निकले तो अँधेरा हो चुका थाl मेरे पिता जी को यकीन था कि उन्हें मुख्य सड़क तक पहुंचने का रास्ता अच्छे से पता है, लेकिन ऐसा नहीं थाl वह घूमते रहे, फिर उन्हें कुछ समझ न आया, और अंत में निराश हो गयेl मेरी माँ ने उन्हें विश्वास दिलाया, “मुझे पता है आपके लिए यह कठिन है, लेकिन अपने फोन से दिशा पूछ लीजिएl यह कोई बड़ी बात नहीं हैl”

उनके जितने जीवन से मैं अवगत हूँ, यह पहली बार था जब मेरे छिहत्तर वर्ष के पिता जी ने दिशा पूछी, वह भी अपने फोन सेl

भजनकार जीवन के अनुभव से प्रचुर एक व्यक्ति थाl लेकिन भजन कुछ ऐसे पलों को प्रगट करते हैं जब लगता है कि दाऊद आत्मिक और भावात्मक रूप से खोया हुआ महसूस कर रहा थाl भजन संहिता 143 में ऐसे ही एक समय का उल्लेख हैl महान राजा का मन निराश था (पद 4)l वह मुश्किल में था (पद 11)l इसलिए वह रुकता है और यह प्राथना करता है, “जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे” (पद 8)l और किसी फोन का सहारा लेने से कहीं परे, भजनकार ने प्रभु को पुकारते हुए कहा, “क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है” (पद 8)l

यदि “[परमेश्वर के] मन के अनुसार व्यक्ति” (1 शमूएल 13:14) ने समय समय पर खोया हुआ महसूस किया, तो यह निश्चित है कि परमेश्वर के दिशा-निर्देश को पाने के लिए हमें भी उसकी ओर मुड़ना होगाl