

ज़ोर से बंद आँखें
वह जानता था कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए थाl मैं स्पष्ट देख पा रहा था कि वह जानता था कि यह गलत था: यह उसके चिहरे पर साफ़ लिखा था! जब मैं उसके साथ उसकी गलती के बारे में बात करने के लिए बैठा तो मेरे भतीजे ने तुरन्त अपनी आखें ज़ोर से बंद कर लींl वह बैठा सोच रहा था और उसका तीन वर्षीय अबोध मन विचार कर रहा था कि यदि वह मुझे नहीं देख रहा था तो इसका मतलब था कि वह मेरी दृष्टि से ओझल थाl और सोच रहा था कि यदि वह मुझसे अदृश्य था तो वह बात करने से और अपने किए से (और इसके परिणामों से) बच सकता थाl
मुझे बहुत ख़ुशी है कि मैं उस समय उसे देख पा रहा थाl जो उसने किया था मैं उससे सहमत नहीं था और हमें इसके बारे में बात करने की आवश्यकता थी, इसलिए मैं बिलकुल नहीं चाहता था कि कोई चीज़ हमारे बीच में आएl मैं चाहता था कि वह सीधा मेरे चिहरे की ओर देखे और जाने कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ और उसे क्षमा करने के लिए उत्सुक हूँ! उसी पल मुझे विचार आया कि जब आदम और हवा ने अदन की बाटिका में परमेश्वर के भरोसे को तोड़ा तो उस समय उसे कैसा महसूस हुआ होगाl अपने अपराधबोध को महसूस करते हुए उन्होंने परमेश्वर से छिपने का प्रयास किया (उत्पत्ति 3:10), जो उन्हें उतना ही साफ़ साफ़ “देख” पा रहा था जितना कि मैं अपने भतीजे को देख रहा थाl
जब हमें अहसास होता है कि हमने कुछ गलती की है तो अक्सर हम परिणामों से बचना चाहते हैंl हम अपनी गलती से भागते हैं, इसे छिपाते हैं, या सत्य के प्रती अपनी आँखों को बंद कर लेते हैंl परमेश्वर हमें अपने धर्मी मापदंड के हिसाब से निश्चित रूप से ज़िम्मेदार ठहरता है, लेकिन वह हमें देखता है (हमें खोजता है!) क्योंकि वह हमसे प्रेम करता है और यीशु मसीह के द्वारा क्षमा प्रदान करता हैl

माँगना अच्छा है
मेरे पिता के पास दिशा समझने की ऐसी समझ थी जिससे मुझे हमेशा ईर्ष्या होती थीl उन्हें बस पता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम किस तरफ हैंl यह ऐसे है जैसे कि वह इस बोध के साथ ही पैदा हुएl और उनका अनुमान हमेशा सही रहा था, उस रात तक जब यह गलत साबित हुआl
यह वह रात थी जब मेरे पिता जी खो गयेl वह और मेरी माँ एक अजनबी शहर में किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गये और जब वहाँ से निकले तो अँधेरा हो चुका थाl मेरे पिता जी को यकीन था कि उन्हें मुख्य सड़क तक पहुंचने का रास्ता अच्छे से पता है, लेकिन ऐसा नहीं थाl वह घूमते रहे, फिर उन्हें कुछ समझ न आया, और अंत में निराश हो गयेl मेरी माँ ने उन्हें विश्वास दिलाया, “मुझे पता है आपके लिए यह कठिन है, लेकिन अपने फोन से दिशा पूछ लीजिएl यह कोई बड़ी बात नहीं हैl”
उनके जितने जीवन से मैं अवगत हूँ, यह पहली बार था जब मेरे छिहत्तर वर्ष के पिता जी ने दिशा पूछी, वह भी अपने फोन सेl
भजनकार जीवन के अनुभव से प्रचुर एक व्यक्ति थाl लेकिन भजन कुछ ऐसे पलों को प्रगट करते हैं जब लगता है कि दाऊद आत्मिक और भावात्मक रूप से खोया हुआ महसूस कर रहा थाl भजन संहिता 143 में ऐसे ही एक समय का उल्लेख हैl महान राजा का मन निराश था (पद 4)l वह मुश्किल में था (पद 11)l इसलिए वह रुकता है और यह प्राथना करता है, “जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे” (पद 8)l और किसी फोन का सहारा लेने से कहीं परे, भजनकार ने प्रभु को पुकारते हुए कहा, “क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है” (पद 8)l
यदि “[परमेश्वर के] मन के अनुसार व्यक्ति” (1 शमूएल 13:14) ने समय समय पर खोया हुआ महसूस किया, तो यह निश्चित है कि परमेश्वर के दिशा-निर्देश को पाने के लिए हमें भी उसकी ओर मुड़ना होगाl

नया वर्ष, नयी प्राथमिकताएँ
मैं हमेशा से सेलो बजाना सीखना चाहता थाl लेकिन मुझे कभी भी किसी कक्षा में दाखिला लेने का समय नहीं मिलाl या, शायद यह कहना ज़्यादा सही होगा कि मैंने इसके लिए समय निकाला ही नहींl मैंने सोचा कि शायद मैं स्वर्ग में इस वाद्य यंत्र को बजाने में माहिर हो सकूँगाl इसी दौरान मेरी इच्छा यह रही कि मैं अपना ध्यान उन विशेष तरीकों पर लगाऊं जिनके द्वारा परमेश्वर ने अब मुझे उसकी सेवा करने के लिए बुलाया हैl
जीवन छोटा है और अक्सर हम पर यह दबाव रहता है कि धरती पर जो समय हमें मिला है इससे पहले कि यह हमारे हाथ से फिसले, हम इसका ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाएँl लेकिन वास्तव में इसका अर्थ क्या है?
राजा सुलेमान ने जीवन के अर्थ पर चिंतन करते हुए दो सुझाव दिएl पहला, हमें यथासम्भव सबसे अर्थपूर्ण ढंग से अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए, जिसमें उन अच्छी चीजों का पूरा आनन्द उठाना भी शामिल है जिनका परमेश्वर हमें हमारे जीवन में अनुभव करने देता है, जैसा कि खाने-पीने की चीज़ें (सभोपदेशक 9:7), वस्त्र और इत्र (पद 8), विवाह (9 पद) और परमेश्वर के सब अच्छे उपहार, जिसमें सेलो बजाना सीखना भी हो सकता हैl
उसका दूसरा सुझाव था पूरी शक्ति के साथ परिश्रम करना (पद 10)l जीवन अवसरों से भरपूर है और करने के लिए काम हमेशा होता हैl हमें उन अवसरों का लाभ उठाना है जो परमेश्वर हमें देता है और उसकी बुद्धि को खोजना है कि अपने काम और मज़े की प्राथमिकताएँ इस प्रकार से निर्धारित करें कि उसके द्वारा जो गुण हमें दिए गये हैं वे उसकी सेवा में इस्तेमाल होंl
जीवन प्रभु की ओर से एक अद्भुत उपहार हैl जब हम उसके द्वारा दी जाने वाली प्रतिदिन की आशीषों और उसकी अर्थपूर्ण सेवा, दोनों में प्रसन्न रहते हैं तो हम उसका आदर करते हैंl