सन्दर्भ से बाहर
जब मैं अपनी फ्लाइट में चढ़ने के लिए कतार में खड़ी थी, तो किसी ने मेरा कन्धा थपथपाया। मैं मुड़ी और मुझे एक बहुत मीठा अभिनन्दन मिला। “एलिसा! क्या तुम्हें मैं याद हूँ? मैं जोअन हूँ!” मेरे मन में अनेक जोअन आ गई जिन्हें मैं जानती थी, परन्तु मैं उसे नहीं पहचान पाई। क्या वह एक पुरानी पड़ोसन थी। एक पुरानी सहकर्मी थी? ओह...मैं नहीं जानती।
मेरे संघर्ष को महसूस करके, जोअन ने उत्तर दिया, “एलिसा, हम एक दूसरे को हाई स्कूल से जानते थे।” शुक्रवार की रात की फुटबाल गेम्स, स्टेडियम में खड़े हो कर चिल्लाना। एक बार जब सन्दर्भ साफ़ हो गया, तो मैंने जोअन को पहचान लिया।
यीशु की मृत्यु के बाद, मरियम मगदलीनी तड़के ही कब्र पर गई और पत्थर को लुढ़का हुआ और उसकी देह को गायब पाया (यूहन्ना 20:1-2) । वह पतरस और यूहन्ना को बुलाने के लिए भागी, और वे उसके साथ खाली कब्र को देखने के लिए लौटे (पद 3-10) । परन्तु वह दुःख में बाहर ही खड़ी रही (पद 11) । जब यीशु वहाँ दिखाई दिया, “उसने नहीं पहचाना कि यह यीशु था” (पद 14), उसने सोचा कि यह तो कोई माली है (पद 15) ।
उसने यीशु को कैसे नहीं पहचाना? क्या उसकी पुनरुत्थित देह इतनी बदल गई थी कि उसे पहचाना भी कठिन हो गया था? क्या उसके दुःख ने उसकी पहचान को छिपा दिया था? या शायद, मेरी तरह, क्या यह इसलिए था कि यीशु कब्र में मरे हुए होने के स्थान पर बगीचे में जिन्दा “सन्दर्भ से बाहर” था, इसलिए वह उसे पहचान ही नहीं पाई?
हम भी यीशु से कैसे चूक जाएँगे, यदि वह हमारे समय में आ जाए-प्रार्थना या बाइबल-अध्ययन के दौरान या साधारणत: हमारे दिलों में फुसफुसा रहा हो?
युद्ध
जब एक तोप का गोला धरती को हिला देने वाली धम्म की आवाज़ के साथ उसके पास गिरा, तो एक युवा सैनिक ने उत्सुकता के साथ प्रार्थना की, “प्रभु यदि तू मुझे यहाँ से बाहर निकाल दे, तो मैं उस बाइबल स्कूल में चला जाऊँगा, जिसमें माँ मुझे भेजना चाहती थी। परमेश्वर ने उसकी पूरी तरह से केन्द्रित प्रार्थना का सम्मान किया। मेरे पिता विश्व युद्ध II में जीवित बच गए, मूडी बाइबल इंस्टिट्यूट में गए और अपना जीवन सेवा के लिए दे दिया।
एक अन्य योद्धा ने एक भिन्न प्रकार की मुसीबत का सामना किया, जो उसे परमेश्वर की ओर ले आई, परन्तु उसकी कठिनाइयाँ बढ़ गई, जब उसने लड़ाई से बचना चाहा। जब राजा दाऊद की सेना अमोरियों के साथ युद्ध लड़ रही थी,दाऊद अपने महल में दूसरे की पत्नी पर एक झलक से ज्यादा नज़र डाल रहा था (देखें 2 शमूएल 11) । भजन 39 में दाऊद इसके परिणामस्वरूप हुए भयंकर पाप से पुनर्स्थापन की प्रक्रिया के इतिहास का वर्णन करता है। वह लिखता है “मेरी पीड़ा बढ़ गई।” “मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था।” (पद 2-3)।
दाऊद की टूटी हुई आत्मा ने उसे इस बात पर ध्यान दिलाया: “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ!” (पद 4)। अपने नए बने केन्द्र में दाऊद निराश नहीं हुआ। वह कहीं और नहीं जा सकता था। “अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। (पद 7) । दाऊद इस आन्तरिक लड़ाई में विजयी होगा और परमेश्वर की सेवा करता रहेगा।
हमारे प्रार्थना के जीवन को क्या प्रोत्साहित करता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक हमारी प्रार्थना का केन्द्र है। परमेश्वर ही हमारी आशा का स्रोत है। वह चाहता है कि हम अपने मन की बात उसे बताएँ।
परमेश्वर के द्वारा देख लिया गया
मेरे पहले चश्मे ने मेरी आँखों को एक साफ़ संसार के लिए खोल दिया था। मुझे निकट की वस्तुएँ साफ़ और स्पष्ट दिखाई देती हैं। परन्तु चश्मे के बिना कमरे से बाहर या कुछ दूरी पर चीज़ें धुंधली दिखाई देती हैं। बारह साल की आयु में, मेरे पहले चश्मे से ब्लैकबोर्ड पर शब्दों को, पेड़ पर छोटे-छोटे पत्तों को और सबसे अच्छा लोगों के चेहरों पर बड़ी मुस्कुराहट को देखकर आश्चर्यचकित हो गई थी।
जब मैंने मित्रों का अभिनन्दन किया तो वे मेरी ओर पलट कर मुस्कुराए, तब मैंने सीख लिए कि दिखाई देना भी देखने की आशीष जितना ही बड़ा उपहार है।
दासी हाजिरा ने जान लिया था कि जैसे ही वह अपनी मालकिन सारै की दयाहीनता से भागी। हाजिरा अपनी संस्कृति में कुछ भी नहीं थी, वह गर्भवती थी अकेली थी और बिना सहायता और आशा के मरुभूमि में भाग रही थी। परमेश्वर को देख लेने के बदले में परमेश्वर के द्वारा देख लिए जाने पर वह सशक्त की गई थी। एक अनजान सिद्धांत के स्थान पर परमेश्वर उसके लिए वास्तविक बन गया इतना वास्तविक कि उसने परमेश्वर को एक नाम एल रोई दे दिया जिसका अर्थ है “तू एक ऐसा परमेश्वर है, जो मुझे देखता है।” उसने कहा, “अब मैंने उसे देख लिया है जो मुझे देखता है” (उत्पत्ति 16:13) ।
हमारा देखने वाला परमेश्वर हम में से प्रत्येक को देखता है। जो अपने आप को अनदेखा, अकेला या नाचीज़ अनुभव करते हैं? परमेश्वर आपको और आपके भविष्य को देखता है। उसके बदले में परमेश्वर करे कि हम उसे हमारी अनन्त आशा, प्रोत्साहन, उद्धार और आनन्द-हमारे आज और हमारे कल के लिए-के रूप में देखें। देखने के इस अद्भुत उपहार, उस सच्चे और जीवित परमेश्वर को देखने के लिए आज हम उसकी स्तुति करें।
श्रेय देना
1960 में कुछ असामान्य तस्वीरें, जिसमें उदास बड़ी आँखों वाला व्यक्ति या एक जानवर होता था, बहुत प्रसिद्ध हो गई थीं। कुछ लोगों ने इस कार्य को “भावुक” – (या घटिया) समझा, - परन्तु कुछ को इसमें प्रसन्नता प्राप्त हुई। जब उस कलाकार के पति ने अपनी पत्नी की रचनाओं को प्रोन्नत करना आरम्भ किया, तो यह दम्पति काफ़ी समृद्ध हो गया। परन्तु उस कलाकार के हस्ताक्षर-मार्गरेट केन-उसके कार्य पर कभी दिखाई नहीं दिए। इसके स्थान पर मार्गरेट के पति ने अपनी पत्नी के कार्य को अपना कार्य करके प्रस्तुत किया। भय के कारण मार्गरेट बीस वर्षों तक इस धोखेबाज़ी के बारे में चुप रही, जब तक उनका तलाक नहीं हो गया। उन दोनों में एक कोर्ट में हुए पेंटिंग की प्रतिस्पर्धा ने वास्तविक कलाकार की पहचान को प्रमाणित किया।
उस व्यक्ति की धोखेबाज़ी स्पष्ट रूप से गलत थी, परन्तु यीशु के अनुगामियों के रूप में हमारे लिए अपने गुणों या दूसरों के लिए की गई भलाई का श्रेय ले लेना बहुत आसान होता है। परन्तु वे विशेषताएँ मात्र परमेश्वर के अनुग्रह के कारण ही होती हैं। यिर्मयाह 9 में हम पाते हैं कि वह नबी दीनता की कमी और लोगों के अपश्चातापी हृदयों के कारण विलाप कर रहा है। उसने लिखा कि हमें अपनी बुद्धि, अपनी ताकत या अपनी धन-सम्पत्ति पर घमण्ड नहीं करना चाहिए, अपितु यह कि हम यह समझ और जान सकें कि वह ही प्रभु है “जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है” (पद 24) ।
हमारे हृदय आभार से भर जाते हैं जब हम वास्तविक कलाकार की पहचान को समझ लेते हैं। “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उतम दान...पिता की ओर से मिलता है” (याकूब 1:17) । समस्त श्रेय और सम्पूर्ण स्तुति अच्छे वरदान देने वाले की ही है।