जब सिउ फेन को पता चला कि उनके गुर्दे खराब हो गए हैं और अब उन्हें पूरे जीवन भर डायलिसिस करवाने की आवश्यकता पड़ेगी, तो वह हार मान लेना चाहती थी। सेवानिवृत्त और अकेली, यीशु पर लम्बे समय से विश्वासी, उस महिला को जीने का कोई उद्देश्य दिखाई नहीं दिया। परन्तु मित्रों ने उन्हें डटे रहने और डायलिसिस करवाने और उसकी सहायता के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए कायल किया।

दो साल बाद, उसने अपने अनुभव के जैसा ही कुछ पाया, जब उनकी भेंट दुर्बल कर देने वाली बिमारी वाली कलीसिया की एक मित्र से हुई। वह महिला भी अकेली थी, कुछ लोग ही समझ सकते थे कि वह महिला कैसे समय से गुजर रही थी। परन्तु सिउ फेन उसकी शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा को समझ सकती थी और उसके साथ व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध रख सकती थी। उसके अपने अनुभव ने उन्हें उस महिला के साथ-साथ चलने और उसे वह आराम देने के योग्य बनाया, जो उसे दूसरे लोग नहीं दे पाए थे। उसने कहा “अब मैं देख रही हूँ, कि परमेश्वर अभी भी मुझे कैसे इस्तेमाल कर सकता है।”

यह समझना कठिन हो सकता है कि हम दुःख क्यूँ उठाते हैं। परन्तु फिर भी परमेश्वर हमारी पीड़ाओं को अनपेक्षित रूप से इस्तेमाल कर सकता है। परीक्षाओं में जब हम आराम और प्यार के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, तो यह हमें दूसरों की सहायता करने के लिए भी सशक्त करता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पौलुस ने अपनी पीड़ाओं में उद्देश्य को देखना सीख लिया था: इसने उसे परमेश्वर के आराम को ग्रहण करने का अवसर प्रदान किया, जिसे फिर वह दूसरों को आशीष देने के लिए इस्तेमाल कर सका (2 कुरिन्थियों 1:3-5) । हमें अपनी पीड़ा और दुःख से बचने के लिए नहीं कहा गया है, परन्तु हम ढाढ़स के साथ परमेश्वर की योग्यता में इसे भले के लिए प्रयोग कर सकते हैं।