उसका पूरा ध्यान सबसे ऊपर वाली शेल्फ पर था, जहाँ स्पैगेटी की चटनी का शीशे का जार रखा हुआ था। मैं भी परचून की उस पंक्ति में उसी शेल्फ को देखते हुए उसके साथ ही खड़ा हुआ निर्णय लेने का प्रयास कर रहा था। परन्तु मेरी उपस्थिति से बेखबर, वह अपनी दशा में खोई हुई थी। मुझे उस ऊंची शेल्फ से कोई समस्या नहीं थी क्योंकि मैं बहुत लम्बा व्यक्ति हूँ। परन्तु दूसरी ओर वह लम्बी नहीं थी, बिल्कुल भी नहीं। मैं बोल पड़ा और सहायता करने के लिए कहा। चौंकते हुए उसने कहा, मैंने तो आपको वहाँ खड़े हुए बिलकुल भी नहीं देखा। हाँ, कृपया मेरी सहायता कर दीजिए।” 

शिष्यों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी-भूखी भीड़, बियाबान स्थान और समय हाथों से फिसला जा रहा था-तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह सुनसान जगह है और देर हो रही है; लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” (मत्ती 14:15) । जब यीशु के द्वारा उन्हें लोगों का ध्यान रखने की चुनौती दी गई, तो उन्होंने उत्तर दिया, “यहाँ हमारे पास… ” (पद.17) l उनका पूरा ध्यान तो बस अपनी घटी की ओर था। परन्तु ठीक वहीं उनके साथ यीशु खड़ा था, न केवल रोटी को बढ़ाने वाला, बल्कि स्वयं जीवन की रोटी।  

जब हम अपनी चुनौतियों में फंस जाते और अपने सीमित दृष्टिकोण के द्वारा उनका समाधान निकालने का प्रयास कर रहे होते हैं, तो हम पुनर्जीवित मसीह की स्थायी उपस्थिति को भूल जाते हैं। बियाबान पहाड़ियों से परचून स्टोर की पंक्तियों तक और हर किसी स्थान पर, वह इम्मानुएल है-परमेश्वर ठीक वहीँ हमारे साथ, कठिनाई में सर्वदा उपस्थित सहायता।