जब मैं अपने पिता को याद करता हूँ, तो मैंने उन्हें सबसे अच्छी रीति से हथौड़ा चलाते, बागबानी करते या सीढ़ियों के नीचे अव्यवस्थित कमरे में आकर्षक औजारों और यंत्रों के साथ देखता हूँ। उनके हाथ हमेशा किसी न किसी कार्य को पूरा करने में लगे होते थे-कुछ न कुछ बनाना (कोई गैरेज या एक छत या एक चिड़िया के लिए घर), कईबार ताले ठीक करना और कईबार आभूषण बनाना या शीशे की कलाकृति करना।   

मेरे पिता को स्मरण करना मुझे मेरे स्वर्गीय पिता और सृष्टिकर्ता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, जो सर्वदा से ही कार्य करने में व्यस्त रहे हैं। आदि में, “[परमेश्वर] ने पृथ्वी की नींव डाली. . .उस पर किसने सूत खींचा . . . जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्‍वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे” (अय्यूब 38:4–7)। जो कुछ भी उन्होंने बनाया वह एक कला, एक सर्वोत्तम कृति थी। उन्होंने एक विस्मयकारी सुन्दर संसार की सृष्टि की और इसे “बहुत अच्छा” कहा (उत्पत्ति 1:31)।

उसमें आप और मैं भी शामिल हैं। परमेश्वर ने हमें भयानक और अद्भुत रीति से रचा है (भजन संहिता 139:13–16); और उसने हमें एक लक्ष्य और कार्य करने का एक लक्ष्य प्रदान किया है, जिसमें इस पृथ्वी पर अधिकार रखना और इसके जीव-जन्तुओं की देखभाल करना शामिल है (उत्पत्ति 1:26–28; 2:15) । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या काम करते हैं-हमारे काम में या हमारे आराम में-परमेश्वर हमें सामर्थ प्रदान करता है, जिसकी हमें पूरे दिल के साथ उसके लिए कार्य करने के लिए आवश्यक होती है। जो कुछ भी हम करें, परमेश्वर करे कि वह उन्हें प्रसन्न करने के लिए हो।