एक व्यस्त एयरपोर्ट पर एक युवा माता अकेली संघर्ष कर रही थी। उसका बच्चा बुरी तरह से चिढ़ा हुआ था-वह चिल्ला रहा था, पैर पटक रहा था और वायुयान पर चढ़ने से मना कर रहा था। घबराई हुई और गर्भवती बोझ से दबी उस युवा महिला ने हार मान ली, वह अपने चेहरे को ढक कर निराशा में फ़र्श पर ही बैठ गई थी,और उसने सुबकना शुरू कर दिया था। 

अचानक ही सात महिला सहयात्रियों, सभी अजनबी, ने उस युवा महिला और उसके बच्चे के चारों ओर घेरा बना लिया और उनके साथ खाना पीना, पानी बाँटने लगे एक-दूसरे के गले लगने लगे और कुछ नर्सरी राईम्स भी गाने लगे। प्रेम से भरे उनके उस घेरे ने उस माता और बच्चे को शान्त कर दिया, जो फिर अपने वायुयान में चढ़ गए। वे महिलाएं फिर अपनी-अपनी सीट पर चली गईं, इस बात की परवाह कि उनके सहयोग ने एक युवा माता को बल प्रदान किया, जब उसे इसकी आवश्यकता थी।

यह भजन संहिता 125 के एक सुन्दर सत्य का उदाहरण प्रस्तुत करता है। “जिस प्रकार यरूशलेम के चारों ओर पहाड़ हैं” पद 2 बताता है, “उसी प्रकार यहोवा अपनी प्रजा के चारों ओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा।” यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि यरूशलेम कितनी हलचल वाला नगर था, जो वास्तव में पहाड़ों से घिरा था-जिनमें जैतून पर्वत और मौरियाह पर्वत शामिल थे।

उसी प्रकार परमेश्वर अपने लोगों को घेरे रखते हैं-हमारी आत्माओं का “सर्वदा” सहयोग और सुरक्षा करते हुए। इसलिए भजनकार लिखता है कि कठिन दिनों में “पर्वतों की ओर” आँखें लगाओ (भजन संहिता 121:1)। परमेश्वर प्रबल सहायता, स्थिर आशा और अनन्त प्रेम के साथ प्रतीक्षा करते हैं।