2015 के ग्रीष्मकाल में हमारी कलीसिया से एक समूह उस बात से बहुत ही गम्भीर हो गया, जो उन्होंने मैथरी, नैरोबी, केन्या, की एक गन्दी बस्ती में देखा। हम कच्ची भूमी के फ़र्श, जंग लगी इस्पात की दीवारों और लकड़ी के बैंच वाले स्कूल में गए। परन्तु बहुत ही गरीब परिदृश्य की पृष्ठभूमी में एक व्यक्ति असाधारण था।  

उसका नाम ब्रिलियंट था, जो उसके लिए बिलकुल उपयुक्त था। वह एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका थी, जो आनन्द और दृढ निश्चय से भरी हुई थी, जो उसके कार्य के लिए सटीक थे। रंग-बिरंगी पौशाक पहने हुए, उसकी दिखावट और आनन्द, जिसके साथ वह वच्चों को पढ़ाती थी, हक्का-बक्का कर देने वाला था। 

ब्रिलियंट अपने आस-पास के क्षेत्र में जो चमकदार ज्योति ले कर आई थी, वह उस रीति से मेल खाता है, जिस रीति से फिलिप्पी के मसीहियों को उनके जगत में रहने के लिए रखा गया था, जब प्रथम शताब्दी में पौलुस ने उनके लिए एक पत्री को लिखा था। आत्मिक जरूरत वाले जगत की पृष्ठभूमी के विपरीत, प्रभु यीशु में विश्वासियों को “जलते हुए दीपकों” के समान चमकना था (फिलिप्पियों 2:15)। हमारा कार्य बदला नहीं है। चमकदार ज्योतियों की हर जगह ज़रूरत है! यह जानना कितना उत्साहवर्धक है कि “अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (पद 13), ताकि यीशु में विश्वासी उस रीति से चमक सकें, जिनके लिए यीशु का वह कथन मेल खाता है, जो उनके पीछे चलते हैं। वह हमें अभी भी यह कहता है तुम जगत की ज्योति हो. . . उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने ऐसा चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें”   (मत्ती 5:14–16)।