हे वू (उसका वास्तविक नाम नहीं) चीन की सीमा पार करने के जुर्म में उत्तर कोरिया के श्रम शिविर में कैद की गयी थी l उसने कहा, “क्रूर गार्ड दिन और रात यातना देते थे, कमरतोड़ मेहनत, और अत्यधिक ठंडे फर्श पर चूहों और चीलरों(lice) के साथ सोने के लिए अल्प समय देते थे l किन्तु प्रतिदिन परमेश्वर उसकी सहायता करने के साथ-साथ कैदियों से मित्रता करके उसे अपने विश्वास को साझा करने का अवसर भी देता था l

शिविर से रिहा होने के बाद दक्षिणी कोरिया में रहते हुए, वू शिविर के अपने कैद के समय पर विचार करके बोली कि भजन 23 उसके अनुभव का सार है l एक अँधेरी घाटी में होने के बावजूद, यीशु ही उसका चरवाहा था जिसने उसे शांति दी : “यद्यपि मैंने अपने को मृत्यु की छाया वाली वास्तविक घाटी में पाया, मैं किसी भी बात से डरी हुयी नहीं थी l परमेश्वर प्रतिदिन मुझे सहानुभूति देता था l” जब परमेश्वर उसे आश्वास्त करता था कि वह उसकी प्रिय बेटी थी उसने उसकी भलाई और प्रेम का अनुभव किया l “मैं एक भयंकर स्थान में थी, किन्तु मैं जानती थी . . . मैं परमेश्वर की भलाई और प्रेम का अनुभव करुँगी l” और उसे मालुम था वह हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहेगी l

हम वू की कहानी से प्रोत्साहित हो सकते हैं l उसकी खौफ़नाक स्थिति के बावजूद, उसने परमेश्वर के प्रेम एवं मार्गदर्शन को महसूस किया; और उसने उसे थामा और उसके भय को दूर कर दिया l यदि हम यीशु का अनुकरण करते हैं, वह हमारी परेशानी के समय कोमलता से हमारी अगुवाई करेगा l हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि “[हम] यहोवा के धाम में सर्वदा वास [करेंगे]” (23:6) l