
भस्म होना
अपनी पुस्तक, द कॉल, में ओस गिन्नेस उस क्षण का वर्णन करते हैं जब विंस्टन चर्चिल, दक्षिणी फ्रांस में अपने मित्रों के साथ छुट्टियों में, एक ठंडी रात खुद को गर्म करने के लिए आग के पास बैठ गए l आग को एक टक देखते हुए, पूर्व प्रधान मंत्री ने चीड़ के लट्ठो को “चटचटाहट, फुसफुसाहट, और खड़खड़ाहट की आवाज़ के साथ जलते हुए देखा l अचानक, उनकी परिचित आवाज़ में गर्जन थी, ‘मैं जानता हूँ लकड़ी के लट्ठे क्यों खड़खड़ाते हैं l भस्म होना क्या होता है मैं जानता हूँ l’”
कठिनाइयाँ, निराशा, ख़तरे, विपत्ति, और हमारी अपनी गलतियों के परिणाम सब हमें भस्म होने की तरह अहसास कराते हैं l परिस्थियां धीरे-धीरे हमारे हृदयों से आनंद और शांति छीन लेती हैं l जब दाऊद ने अपने ही पापी चुनावों के परिणाम को खुद पर पूरी तरह हावी होते देखा, उसने लिखा, “जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हड्डियां पिघल गईं . . . और मेरी तरावट धूपकाल की सी झुर्राहत बनती गयी” (भजन 32:3-4) l
ऐसे कठिन समय में, आप सहायता के लिए किस और मुड़ते हैं? पौलुस, जिसके अनुभव सेवकाई के बोझ और टूटेपन से भरे हुए थे, ने लिखा, “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (2 कुरिन्थियों 4:8-9) l
यह किस तरह कार्य करता है? जब हम यीशु में विश्राम करते हैं, हमारा अच्छा चरवाहा मेरे जी में जी ले आता है (भजन 23:3) और हमारी यात्रा के अगले कदम के लिए हमें सामर्थ्य देता है l वह यात्रा के हर चरण में हमारा सहचर बनने की प्रतिज्ञा करता है (इब्रानियों 13:5) l

शांति से भरे हुए हृदय
एक व्यवसायिक एथलीट(खिलाड़ी) के रूप में उसकी आजीविका का अंत होने के बाद पैंतालिस वर्षों तक जेरी क्रेमर को उसके फेम ऑफ़ स्पोर्ट्स हॉल (सर्वोत्तम सम्मान) में प्रतिष्ठित होने नहीं दिया गया l उन्होंने अनेक उपाधियाँ और उपलब्धियों का आनंद उठाया, किन्तु यह उनके हाथ न लगा l यद्यपि उनको इस सम्मान के लिए दस बार नामित किया गया, यह उनको कभी नहीं प्रदान की गयी l अनेक बार उनकी आशा चूर होने का बावजूद, क्रेमर यह कहने में विनीत थे, “मैंने महसूस किया कि [नेशनल फूटबाल लीग] ने मुझे मेरे जीवनकाल में 100 उपहार दिए हैं और एक नहीं प्राप्त करने के विषय परेशान या क्रोधित होना बेवकूफी है!”
अनेक बार जब दूसरे खिलाड़ियों के पक्ष में निर्णय आने पर अन्य द्वेषपूर्ण महसूस कर सकते थे, क्रेमर कष्ट का अहसास नहीं किया l उसका आचरण उस मार्ग का वर्णन करता है जिससे हम अपने हृदयों को इर्ष्या, जिससे “हड्डियां भी जल जाती हैं” (नीतिवचन) के क्षयकारी स्वभाव से सुरक्षित कर सकते हैं l जब हम उन बातों में तल्लीन हो जाते हैं जो हमारे पास है ही नहीं – और उन अनेक चीजों को पहचानने से चूक जाते हैं जो हम करते हैं – परमेश्वर की शांति हमें नहीं मिलेगी l
ग्यारवीं बार नामित होने के बाद, आखिरकार फरवरी 2018 में जेरी क्रेमर को नेशनल फूटबाल लीग[NFL] के फेम ऑफ़ स्पोर्ट्स हॉल से सम्मानित किया गया l शायद हमारी सांसारिक अभिलाषाएँ पूरी न हों जैसे अंत में उसकी हुयी l फिर भी हम सब के पास “शांति से भरा हृदय” हो सकता है जब हम उसके स्थान पर उन अनेक चीजों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जिसके प्रति परमेश्वर हमारे साथ उदार रहा है l इसकी परवाह किये बिना कि हमें क्या चाहिए किन्तु हमारे पास है नहीं, हम हमेशा जीवनदायक शांति का आनंद ले सकते हैं जो वह हमारे जीवनों में देता है l
तराई से होकर
हे वू (उसका वास्तविक नाम नहीं) चीन की सीमा पार करने के जुर्म में उत्तर कोरिया के श्रम शिविर में कैद की गयी थी l उसने कहा, “क्रूर गार्ड दिन और रात यातना देते थे, कमरतोड़ मेहनत, और अत्यधिक ठंडे फर्श पर चूहों और चीलरों(lice) के साथ सोने के लिए अल्प समय देते थे l किन्तु प्रतिदिन परमेश्वर उसकी सहायता करने के साथ-साथ कैदियों से मित्रता करके उसे अपने विश्वास को साझा करने का अवसर भी देता था l
शिविर से रिहा होने के बाद दक्षिणी कोरिया में रहते हुए, वू शिविर के अपने कैद के समय पर विचार करके बोली कि भजन 23 उसके अनुभव का सार है l एक अँधेरी घाटी में होने के बावजूद, यीशु ही उसका चरवाहा था जिसने उसे शांति दी : “यद्यपि मैंने अपने को मृत्यु की छाया वाली वास्तविक घाटी में पाया, मैं किसी भी बात से डरी हुयी नहीं थी l परमेश्वर प्रतिदिन मुझे सहानुभूति देता था l” जब परमेश्वर उसे आश्वास्त करता था कि वह उसकी प्रिय बेटी थी उसने उसकी भलाई और प्रेम का अनुभव किया l “मैं एक भयंकर स्थान में थी, किन्तु मैं जानती थी . . . मैं परमेश्वर की भलाई और प्रेम का अनुभव करुँगी l” और उसे मालुम था वह हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहेगी l
हम वू की कहानी से प्रोत्साहित हो सकते हैं l उसकी खौफ़नाक स्थिति के बावजूद, उसने परमेश्वर के प्रेम एवं मार्गदर्शन को महसूस किया; और उसने उसे थामा और उसके भय को दूर कर दिया l यदि हम यीशु का अनुकरण करते हैं, वह हमारी परेशानी के समय कोमलता से हमारी अगुवाई करेगा l हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि “[हम] यहोवा के धाम में सर्वदा वास [करेंगे]” (23:6) l


बताने के लिए सुसमाचार
“आपका नाम क्या है?” एक ईरानी विद्यार्थी, अरमान ने पूछा l जब मैंने उसे बताया मेरा नाम एस्टेरा है, उसका चेहरा चमक उठा जब वह चिल्लाया, “फ़ारसी में हमारे नाम मिलतेजुलते हैं, यह सेटारेल है!” उस छोटे संवाद ने एक आश्चर्यजनक बातचीत का द्वार खोल दिया l मैंने उसे बताया मेरा नाम एक बाइबल चरित्र, “एस्तेर,” फारस(आज का ईरान) में एक यहूदी रानी के नाम पर रखा गया था l उस कहानी से आरम्भ करके, मैंने यीशु का सुसमाचार सुना दिया l उस बातचीत के परिणामस्वरूप, अरमान मसीह के विषय और सीखने के लिए एक साप्ताहिक बाइबल अध्ययन में जाने लगा l
यीशु का एक अनुयायी, फिलिप्पुस, पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन में, रथ से यात्रा कर रहे इथियोपिया के अधिकारी से एक प्रश्न पूछकर संवाद आरंभ कर दिया : “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” (प्रेरित 8:30) l वह इथियोपियाई व्यक्ति यशायाह की पुस्तक पढ़ते हुए आत्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करना चाहता था l इसलिए फिलिप्पुस का प्रश्न सही समय पर पहुँचा l उसने फिलिप्पुस को अपने निकट बैठाया और दीनता से उसको सुना l फिलिप्पुस ने, उस अद्भुत अवसर को पहचानकर, “इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया” (पद.35) l
फिलिप्पुस की तरह, हमें भी सुसमाचार बताना है l प्रतिदिन अपने कार्यस्थल पर, किसी जनरल स्टोर पर, अथवा अपने पड़ोस में उन अवसरों को न जाने दें जो हमें मिलते हैं l मसीह में हमारी आशा और आनंद साझा करने के लिए पवित्र आत्मा को हमारे क़दमों को मार्गदर्शित और हमें शब्द देने दें l
