मैंने अंगूर के बाड़े के ऊपर से झांका जो हमारे पिछवाड़े के आँगन को चारों-ओर से घेरता है l वहाँ मैंने उस पार्क के ट्रैक पर जो हमारे घर के पीछे वाले आँगन को चारों-ओर से घेरता है, लोगों को दौड़ते, जॉगिंग करते, टहलते, और ट्रैक पर टेढ़ी-मेढ़ी चाल से चलते हुए देखा l मैंने सोचा, जब मैं शरीर से मजबूत था तब ऐसा करता था l और असंतुष्टता की एक लहर मेरे ऊपर से गुज़र गयी l

बाद में, बाइबल पढ़ते समय, मैंने यशायाह 55:1 पढ़ा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ,” और मैंने पुनः जाना कि असंतुष्टता (प्यास) एक नियम है, इस जीवन में एक अपवाद नहीं है l कुछ भी नहीं, जीवन की अच्छी बातें भी, पूरी तौर से संतुष्ट नहीं कर सकती हैं l यदि मेरी टांगें शेरपा(पर्वत-आरोहण गाइड) की तरह होतीं, तब भी मेरे जीवन में कुछ ऐसा होता जिसके विषय मैं नाखुश रहता l

हमारी संस्कृति निरंतर हमसे किसी न किसी तरह से बोलती रहती है कि हमें कुछ करना है, कुछ खरीदना है, कुछ पहनता है, कुछ परफ्यूम(स्प्रे) लगाना है, या सैर करना है जो हमें अंतहीन सुख देंगे l परन्तु यह एक झूठ है l चाहे हम कुछ भी करें, हमें यहाँ पर और वर्तमान में किसी भी वस्तु से सम्पूर्ण संतुष्टता नहीं मिलेगी l

इसके बदले, यशायाह हमें बार-बार परमेश्वर और वचन की ओर लौटकर उसकी सुनने के लिए आमंत्रित करता है l और वह क्या कहता है? प्राचीन काल के दाऊद के लिए उसका प्रेम “अटल” और “सदा” का है (पद.3) l और वह आपके और मेरे लिये भी ऐसा है है! हम उसके पास “आ” सकते हैं l