वह दिन किसी अन्य दिन के समान ही शुरू हुआ था, परन्तु दुःस्वप्न की तरह समाप्त हुआ l एक धार्मिक आतंकवादी समूह द्वारा एस्तर (उसका वास्तविक नाम नहीं) और कई सौ महिलाओं को उनके आवासीय स्कूल से अपहृत कर लिया गया l एक महीने बाद, एस्तर को छोड़कर जिसने मसीह का इनकार नहीं किया, बाकियों को मुक्त कर दिया गया l जब मेरी सहेली और मैं उसके और दूसरों के विषय पढ़ रहे थे जो अपने विश्वास के कारण सताए जा रहे थे, हमारे हृदय द्रवित हो गए l हम कुछ करना चाहते थे l लेकिन क्या?

जब प्रेरित पौलुस कुरिन्थियों की कलीसिया को लिख रहा था, उसने आसिया के प्रदेश की परेशानी को उनसे साझा किया जो वहाँ उसने अनुभव किया था l सताव इतना भयंकर था कि वह और उसके सहकर्मियों ने “जीवन से भी हाथ धो बैठे थे” (2 कुरिन्थियों 1:8) l हालाँकि, विश्वासियों की प्रार्थनाओं ने पौलुस की सहायता की थी (पद.11) l यद्यपि कुरिन्थुस की कलीसिया पौलुस से कई मील दूर थी, उनकी प्रार्थनाएँ सार्थक थीं और परमेश्वर ने उनकी सुन ली l यहाँ इसमें एक अद्भुत रहस्य है : सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारी प्रार्थनाओं को उपयोग करने का निर्णय करता है l कितना बड़ा सौभाग्य!

आज हम विश्वास की खातिर सताव सह रहे भाई और बहनों को निरंतर प्रार्थना में याद रख सकते हैं l कुछ है जो हम कर सकते हैं l हम अधिकारविहीन, शोषित, पराजित, उत्पीड़ित, और कभी-कभी मसीह में अपने विश्वास के कारण मृत्यु का सामना कर रहे लोगों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं l उनके लिए प्रार्थना करें कि वे परमेश्वर का विश्राम और प्रोत्साहन प्राप्त करें और यीशु के साथ दृढ़ता से खड़े होने के लिए आशा में सामर्थी बनते जाएँ l