बोस्टन के मेसाचुसेट्स में, “आँसुओं का कटोरा पार करना” शीर्षक की एक पट्टिका 1840 के अंत में भयंकर विपत्ति आयरिश पोटैटो फेमिन(अकाल) के समय मृत्यु से बचने के लिए अटलांटिक महासागर पार करनेवालों की याद दिलाता है l इस महाविपदा में लाखों लोग मर गए थे, जबकि लाखों या उससे भी अधिक संख्या में लोगों ने घर छोड़कर महासागर को पार किया, जिसे जॉन बॉईल ओरीली काव्यात्मक रूप से “आँसुओं का कटोरा” संबोधित करता है l भूख और पीड़ा के कारण, इन यात्रियों ने नैराश्य के समय कुछ आशा ढूंढने का प्रयास किया l  

भजन 55 में, दाऊद ने साझा किया कि उसने किस प्रकार आशा को ढूंढा l जबकि हम उस आशंका की विशिष्टता से जिसका उसने सामना किया अवगत नहीं हैं, उसके अनुभव का बोझ उसे भावनात्मक रूप से तोड़ने में पर्याप्त था (पद.4-5) l उसका स्वाभाविक उत्तर प्रार्थना करना था, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता ! (पद.6) l

दाऊद के समान, हम भी पीड़ादायक परिस्थितियों के मध्य सुरक्षा की ओर भागना चाहते हैं l अपनी दशा पर विचार करके, हालाँकि, दाऊद अपनी पीड़ा से दूर भागने के स्थान पर यह गाते हुए, अपने परमेश्वर की ओर भागने का निर्णय किया, “परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूँगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा” (पद.16) l

जब परेशानी आती है, याद रखें कि समस्त सुख का परमेश्वर आपको सबसे अंधकारमय क्षणों और सबसे गहन भय में से निकालने में समर्थ है l उसकी प्रतिज्ञा है कि एक दिन वह स्वयं हमारी आँखों से हर एक आंसू पोंछ देगा (प्रकाशितवाक्य 21:4) l हम इस निश्चयता से बलवंत होकर आज अपने आँसुओं के साथ उस पर दृढ़ भरोसा रख सकते हैं l