“भालू” मेरे पौत्र के लिए उपहार था – एक विशाल भरवा पशु फ्रेम में निहित प्रेम का ढेर लगाने वाली सहायता l डी शिशु का प्रतिउत्तर? पहले, आश्चर्य l अगला, एक आश्चर्यचकित विस्मय l उसके बाद, एक साहसी जांच पड़ताल को उकसाने वाली जिज्ञासा l उसने अपनी थुल-थुल ऊँगली भालू के नाक में कोंचा, और जब भालू उसकी बाहों में लुढ़क गया उसने आनंद, आनंद आनंद के साथ प्रतिक्रिया किया! शिशु डी ने अपने नन्हे सिर को भालू के नरम सीने पर रखकर उसे ज़ोर से गले लगाया l एक गढ़ेदार मुस्कराहट उसके गालों पर फ़ैल गयी जब वह भालू के गद्दीदार कोमलता में अन्दर घुस गया l भालू उससे वास्तविक प्रेम नहीं कर सकता था बच्चा इससे पूरी रीति से अनिभिज्ञ था l भोलेपन और स्वाभाविक रूप से, उसने भालू से प्रेम का अनुभव किया और पूरे मन से उसे लौटा दिया l

आरंभिक मसीहियों को लिखे अपने तीन पत्रियों में से पहली में, प्रेरित यूहन्ना दृढ़तापूर्वक कहता है कि परमेश्वर स्वयं ही प्रेम है l “जो प्रेम परमेश्वर हमसे रखता है, उसको हम जान गए और हमें उसका विश्वास है,” वह लिखता है l “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:16) l

परमेश्वर प्रेम करता है l एक काल्पनिक पशु के तकिये द्वारा नहीं परन्तु पसरी हुयी बाहों के साथ एक वास्तविक मानव शरीर द्वारा जिसमें एक टुटा हुआ हृदय धड़क रहा था (यूहन्ना 3:16) l यीशु के द्वारा, परमेश्वर ने हमारे साथ अपने असाधारण और बलिदानी प्रेम को संचारित किया l

यूहन्ना आगे कहता है, “हम इसलिए प्रेम करते हैं, कि पहले उसने हमसे प्रेम किया” (1 यूहन्ना 4:19) l जब हम विश्वास करते हैं हमसे प्रेम किया गया हैं, हम भी प्रेम दिखाते हैं l परमेश्वर का वास्तविक प्रेम हमारे लिये हमें – हमारे सम्पूर्ण हृदय से – परमेश्वर से और दूसरों से प्रेम करना संभव बनाता है l