जब मैं अपने बच्चों के संग लम्बी पैदल यात्रा कर रही थी, हमें रौशनी दिखाई दी, पगडण्डी पर छोटे गुच्छों में उगते हुए लचीले हरे पौधे l संकेतचिन्ह के अनुसार, सामान्य तौर पर इस पौधे को डिअर मोस(एक प्रकार का शैवाल/घास) कहा जाता है, किन्तु वास्तव में वह शैवाल है ही नहीं l यह एक प्रकार की काई(lichen) है l यह लाइकेन्स(काई) फफूंद(fungus) और शैवाल(alga) का एक साथ एक पारस्परिक सम्बन्ध में उन्नति करना है जिसमें दोनों जीव(organism) एक दूसरे से लाभ प्राप्त करते हैं l फफूंद(fungus) और शैवाल(alga) दोनों ही खुद के बल पर जीवित नहीं रह सकते हैं, परन्तु मिलकर वे एक मजबूत पौधा बनते हैं जो कुछ उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में 4,500 वर्षों तक जीवित रहते हैं l क्योंकि यह पौधा सूखा/अनावृष्टि और निम्न तापमान को बर्दाश्त कर लेता है, यह गहन शीतकाल में बारहसिंगा(caribou/reindeer) के भोजन का एकमात्र श्रोत है l

फफूंद(fungus) और शैवाल(alga) का परस्पर सम्बन्ध मुझे हमारे मानव संबंधों की याद दिलाते हैं l हम एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं l उन्नति और विकास करने के लिए, हमें एक दूसरे के साथ सम्बंध बनाकर रहना होगा l

कुलुस्से के विश्वासियों को लिखते हुए, पौलुस, वर्णन करता है हमारे रिश्ते किसे होने चाहिए l हमें “बड़ी करुणा, और भलाई और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता” (कुलुस्सियों 3:12) धारण करना है l हमें एक दूसरे को क्षमा करते हुए शांति से “मसीह की . . . एक देह होकर” जीवन बिताना है (पद.15) l

अपने परिजनों या मित्रों के साथ शांति से जीवन जीना हमेशा सरल नहीं है l किन्तु जब पवित्र आत्मा हमें हमारे संबंधों में दीनता और क्षमा को पर्दर्शित करने के लिए समर्थ करता है, एक दूसरे के लिए हमारा प्रेम मसीह की ओर इंगित करता है (यूहन्ना 13:35) और परमेश्वर को महिमा मिलती है l