“आप शांति के विषय क्या सोचते हैं?” साथ में दोपहर का भोजन खाते समय मेरे मित्र ने  पूछा l “शांति?” मैंने घबराकर उत्तर दिया l “मैं निश्चित नहीं हूँ – आप क्यों पूछ रहे हैं?” उसका उत्तर था, “अरे, जब तुम चर्च आराधना के समय अपने पैरों को हिला रही थी मैंने सोचा कि शायद तुम किसी बात के विषय क्षुब्ध थी l क्या तुमने उस शांति के विषय विचार किया है जो परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों को देता हैं?”

कुछ वर्ष पहले उस दिन, मुझे अपने मित्र के प्रश्न से ठेस पहुंचा था, किन्तु इससे मैं एक नयी यात्रा पर चल पड़ी l मैंने बाइबल में खोजना शुरू कर दिया कि किस प्रकार परमेश्वर के लोगों ने शांति और स्वास्थ्य के वरदान को, कठिनाई के समय भी गले लगाया है l जब मैंने कुलुस्सियों के नाम पौलुस की पत्री पढ़ी, मैंने प्रेरित के निर्देश को कि मसीह की शांति उनके हृदय में राज्य करे पर गहन चिंतन किया (कुलुस्सियों 3:15) l

पौलुस एक ऐसी कलीसिया को लिख रहा था जहाँ वह पहले कभी नहीं गया था किन्तु उनके विषय अपने मित्र इपफ्रास से सुना था l वह चिंतित था कि झूठी शिक्षा का सामाना करने के दौरान, वे मसीह की शांति को खो रहे थे l परन्तु उनको उलाहना देने के बजाए, पौलुस ने उनको मसीह में भरोसा करने के लिए उत्साहित किया, जो उन्हें निश्चितता और आशा दे सकता था (पद.15) l

हम सब ऐसे समयों का सामना करेंगे जब हम अपने हृदयों में मसीह की शांति के अधिकार का आलिंगन या उसका इनकार करने का चुनाव कर सकते हैं l जब हम यीशु को अपने अन्दर निवास करने के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, वह हमें कोमलता से चिंता और फ़िक्र से जो हमें दबाते हैं निकलेगा l जब हम उसकी शांति को खोजते हैं, हम भरोसा करते हैं कि वह अपने प्रेम के साथ हमसे पेश आएगा l